स्वतंत्रता की भी एक सीमा है ,
जो बस एक सूत से बँधी है ,
महीन ,
नाजुक ,
कोमल ,
बस छूने भर से टूटती है।
स्वतंत्रता है ,
अपने निर्णय ,
खुद अपना भाग्यविधाता बनने की ,
अपने कर्मो से ,
खुद का संसार रचने की।
उस सीमा के बाहर ,
दूसरे की स्वतंत्रता शुरू होती है ,
जितनी बार ,
वो सूत टूटती है ,
उतनी बार स्वतंत्रता ,
अपना दम तोड़ती है।
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