Tuesday, August 13, 2019

स्वतंत्रता की सीमा




स्वतंत्रता की भी एक सीमा है , 
जो बस एक सूत से बँधी है , 
महीन , 
नाजुक ,
कोमल , 
बस छूने भर से टूटती है।  

स्वतंत्रता है , 
अपने निर्णय ,
खुद अपना भाग्यविधाता बनने की , 
अपने कर्मो से , 
खुद का संसार रचने की।  

उस सीमा के बाहर , 
दूसरे की स्वतंत्रता शुरू होती है , 
जितनी बार , 
वो सूत टूटती है , 
उतनी बार स्वतंत्रता , 
अपना दम तोड़ती है।  

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