यूँ तो चलना
अकेले ही होता है ,
इस सफर में
जिसे ,
हम ज़िन्दगी
कहते है ,
मगर राहे
- दोराहे पर ,
मिलते चले
जाते है ,
कुछ साथी
,
चलते है
कदम दर कदम ,
फिर कुछ
छूट जाते है ,
और कुछ नए
मिल जाते है ,
कुछ सबब
दे जाते है ,
कुछ सबक
,
कुछ रास्ते
सपाट से ,
कुछ में
चुभते कंकड़ ,
कुछ खट्टी
,
कुछ मीठी
यादो से ,
चलता रहता
है सफर ,
तलाश में
मंजिल की।
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