Wednesday, July 24, 2019

मन के मौसम हजार


मन के मौसम हजार ,
बदलते बार बार ,
कभी जेठ की दुपहरी सा ,
कभी सावन की फुहार। 

कभी ठंडा जनवरी सा ,
कभी मार्च की पुरवाई ,
कभी शांत समदंर सा ,
कभी नदियाँ की अंगड़ाई। 

कभी बंजर धरती सा ,
कभी खिले फूलो के उपवन सा ,
कभी जोश भरा लबालब ,
कभी पतझड़ सा। 

कभी डूबा डूबा सा ,
कभी हर कोना खाली सा ,
कभी बजती शहनाई ,
कभी मौसम रुसवाई सा। 

कभी गुस्से सा ,
कभी प्यार के सागर सा ,
घड़ी घड़ी  बदलता रहता है ,
चंचल है चकोर सा ।    


1 comment:

  1. As a person u r wonderful but as a poet you are exclusive . You inspire us ..you teach us how to live.
    God bless you

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