सलिल कहो या पय ,
मेघपुष्प या पानी,
वारि कहो या नीर ,
तोय या उदक ,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
स्वादहीन ,
गंधरहित ,
आकारविहीन ,
पारदर्शी महीन,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
बूँदे बनूँ तो बारिश ,
धार बनूँ तो नदियाँ ,
शांत पड़ा रहूँ तो सागर ,
उमड़ घुमड़ में बादल,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
प्यासे के लिए अमृत ,
धरा के लिए सखा ,
सागर से लिपटा ,
शिखरों में फैला स्वेत धवल ,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
सर्वत्र ,
सर्वव्यापी ,
स्वछंद ,
अनमोल मगर सीमित हूँ ,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
संभाल सको ,
तो जीवन हूँ ,
न संभला ,
तो प्रलय हूँ ,
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।
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