Friday, July 12, 2019

जल



सलिल कहो या पय ,
मेघपुष्प या पानी, 
वारि कहो या नीर , 
तोय या उदक , 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।  

स्वादहीन , 
गंधरहित , 
आकारविहीन , 
पारदर्शी महीन, 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।  

बूँदे बनूँ तो बारिश , 
धार बनूँ तो नदियाँ , 
शांत पड़ा रहूँ  तो सागर , 
उमड़ घुमड़ में बादल, 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।  

प्यासे के लिए अमृत , 
धरा के लिए सखा , 
सागर से लिपटा , 
शिखरों में फैला स्वेत धवल , 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।  

सर्वत्र , 
सर्वव्यापी , 
स्वछंद , 
अनमोल मगर सीमित हूँ , 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।  

संभाल सको ,
तो जीवन हूँ , 
न संभला , 
तो प्रलय हूँ , 
मैं जल हूँ , जीवन हूँ।

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