बारिश की पहली बूँद
जब धरा पर गिरी ,
सूखी मिट्टी ने उड़कर ,
उसे गले लगा लिया ,
रच बस कर जब दोनों गिरे ,
धरा पर ,
सावन आ गया।
सोंधी सी सुगंध ,
मिट्टी बौरा गयी ,
बादलो ने देखो ,
उसकी झोली भर दी,
लहलहा उठा ,
तन मन ,
कपोले उसके सीने से ,
फूट पड़ी ,
आलिंगन कर बारिश का ,
देखो ! धरा सज गयी।
निर्लज्ज , बेवफा
कितनी देर लगा दी ,
बूँदो तुमने धरा की ,
जान हलक में ला दी ,
आये हो अब तो ,
निहाल कर दो ,
कण कण में समा कर ,
" मिट्टी " को सोना कर दो।
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