बीच में सड़क पर अधमरा औंधे मुहँ गिरा ,
बचते बचाते निकलते अपनी कारो से , बाइको से ,
नजर सी बचाकर देखकर ,
एक्सेलरेटर पर पाँव दबाते ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे ?
बस स्टॉप पर दस लोग खड़े ,
एक लड़की को छेड़ रहे दो लड़के ,
बालो से घसीट कर ,
अपनी कार में धकेलते ,
लोग यूँ ही खड़े रहे जैसे गूँगे और अंधे ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे ?
उन बूढ़े माँ बाप ने ज़िन्दगी खपा दी ,
जिस छत के लिए ,
अपना पेट काटकर ,
हर ख़ुशी दी अपने जिगर के टुकड़े को ,
एक दिन क्यों शर्म आती है उसको ,
अपने साथ रखने को ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे ?
उसके पास जज्बा था ,
समाज के लिए कुछ करना का ,
साथ किसी ने दिया नहीं - पागल कहते रहे ,
वो सफेदपोश जिसने कभी कुछ किया ही नहीं ,
वोट मांगने के अलावा ,
उसी के पीछे सब चलते रहे भेड़ो की तरह ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे ?
आग लगती है पड़ोस में ,
लगने दो , क्या फर्क पड़ता है हमको ,
फैली जब आग , जद्द में आया अपना घर तो ,
दुसरो की मदद की आस फिर कैसे ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे ?
Good one Nande.. Keep inspiring by your good work.
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