Wednesday, March 4, 2020

तुम पहाड़ी नदी हो !



हाँ , तुम पहाड़ी नदी हो ,
उच्श्रंखल , उन्मुक्त
मनमौजी , अपनी रौ की हो ,
बलखाती इठलाती , कितनी बेपरवाह हो ,
हां , तुम पहाड़ी नदी हो। 

जिसने जुर्रत की तुम्हे रोकने की ,
कहाँ ठहरती हो ,
अनदेखा , अनसुना कर ,
मौज में बहती हो ,
हाँ , तुम पहाड़ी नदी हो। 

जो साथ चला ,
उसको गजब रंग रूप दे देती हो ,
जो राजी नहीं साथ चलने को ,
किनारे लगा , बेबाक बहती हो ,
हाँ , तुम पहाड़ी नदी हो। 

कल कल तुम्हारा ये संगीत ,
वीराने में भी गूँजती हो ,
लाज नहीं आती तुमको ,
पत्थरो से भी अठखेलियाँ करती हो ,
हाँ , तुम पहाड़ी नदी हो। 

कैसे समझे दुनिया स्वछंदता तुम्हारी ,
प्रकृति तुम्हारी कैसे हजम करे ,
दम्भ है बहुत,
कैसे ये स्वीकार करे ,
लेकिन तुम याद रखना ,
पहाड़ी नदी हो,
बहती रहना । 

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