Sunday, March 29, 2020

पत्थर



वो ठुकराया सा बड़ा पत्थर ,
यूँ ही जाने नदी किनारे सालो से पड़ा था ,
तोड़ने की कोशिश बहुत की ,
मगर वो बड़ा कठोर था ,
टूटता ही नहीं था ,
जैसे कोई जिद्द हो ,
हठ हो ,
किसी ने उसे हटाकर वहाँ खेत बनाना चाहा ,
कोई उसे तोड़कर अपना घर बनाना चाहता था ,
मगर वो टूटा ,
हिला ,
बस पड़ा रहा ,
फिर बर्षो बाद भयंकर बारिश आयी ,
नदी में उफान आया ,
भयंकर उफान ,
नदी भी उसके अगल बगल से गुजरी ,
फिर उसके ऊपर भी चढ़ी ,
उसके इनारे किनारे जड़े खोदी ,
लेकिन कुछ हुआ ,
नदी का घमंड टूट गया ,
जब पानी उतरा ,
वो पत्थर ज्यू का त्यूं खड़ा था ,
अगर वह हिल जाता तो शायद ,
उस तरफ का  कच्चा तटबंध पूरा ,
टूट जाता ,
मगर उस पत्थर ने जिद से ,
नदी को धार मोड़ने को मजबूर कर दिया ,
नदी अब भी देखती है उसे दूर से ,
और वह ,
अब भी शान से खड़ा है वही ,
 हाँ , और थोड़ा बड़ा भी हो गया।  

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