सुनो माँ ,
मैं जानता हूँ अब ,
तुम सुन नहीं सकती मुझे
,
देख तो सकती हो ,
उस नीले अम्बर के पार
से ,
जहाँ तुम चली गयी हो
,
क्यूँकि तुम ही कहा करती
थी अक्सर ,
लाखो की भीड़ में भी तुम
,
पहचान सकती हो ,
तो पहचानो माँ ,
मैं अक्सर आकाश को निहारता
हूँ ,
ढूँढता रहता हूँ तुम्हे
,
कभी लगता है तुम सूरज
की ,
किरणे बनकर ,
अपना आशीष दे रही हो
,
कभी बारिश की बूँदो में
,
खुद को भिगोता हूँ ,
जब हवा सर्र से कानो
से ,
गुजरती है मेरे ,
मुझे लगता है ,
जैसे तुम मेरे आस पास
हो ,
मगर दिखती नहीं।
सुनो माँ ,
दुनिया में सब वैसा ही
है ,
जैसा तुम छोड़ गयी थी
,
मगर मेरी दुनिया में
,
सब कुछ बदल गया है ,
अब मुझे डर लगता है
,
घबरा जाता हूँ हर बात
पर ,
खाने में अरुचि हो गयी
है ,
कोई सफलता पाने में
,
ज्यादा ख़ुशी नहीं होती
,
उदास सा रहता हूँ अक्सर
,
अब कोई नहीं कहता मुझसे
,
"तबियत का ध्यान
रखा कर ",
अब मैंने खुद को ज्यादा
व्यस्त,
कर दिया है ,
अकेला रहने से जी घबराता
है ,
कुछ पाने की ख्वाईश
,
बची नहीं है,
सब कहते है ,
मैं इतना बड़ा हो गया
हूँ ,
समझदार और दुनियादारी
समझता हूँ ,
मगर सिर्फ तुझे और मुझे
पता था ,
जहाँ पर भी मुझे संशय
होता था ,
तेरा बस ये कहना
," सब ठीक हो जायेगा "
कैसा चमत्कार करता था,
जब भी तेरे सानिध्य में
होता था ,
कितना निडर होता था
,
लगता था जैसे सारी कायनात
,
मेरे साथ खड़ी थी ,
मेरे पेट भरने के बावजूद
,
"एक रोटी और खा
ले
कमजोर हो गया है
"
बार बार कहती थी।
अभागा हूँ माँ ,
जो तेरी सेवा न कर सका
,
सोचता था ,
मेहनत करता हूँ पहले
,
फिर फुर्सत से बैठूँगा
,
पहले तेरे कुछ सपने
,
पूरे करने की खातिर
,
कुछ जमा करता हूँ ,
तू अक्सर कहा करती थी
,
जोर देती थी नौकरी पाने
की ,
तेरे आदेश का पालन करने
,
मैं छोड़ आया तुझे ,
उम्मीद में की अब जब
लौटूँगा ,
तो साथ में लेकर आऊँगा
,
तेरे कुछ अधूरे सपनो
की ईटे ,
फिर मिल बैठकर देखेंगे
,
सपनो को हकीकत में बदलते
,
मगर शायद ईश्वर को ,
तेरी मेरी ये बात पता
न थी,
उसने तुझे अपना कुछ काम
,
करवाने बुला लिया ,
और मन मसोसकर रह गया।
सुनो माँ ,
क्रोध आता है मुझे कभी
तेरे ईश्वर पर ,
मगर तूने विश्वास करना
सिखाया है ,
"जो करता है , अच्छा
करता है "
हर बार यही समझाया है
,
तेरी इन्ही बातो से पीछे
हटता हूँ ,
वर्ना कई बार ईश्वर को
,
कटघरे में खड़ा करने की
सोचता हूँ।
सुनो माँ ,
अब मैं जल्दी सो जाता
हूँ ,
उम्मीद में ,
कि तुम सपनो में आओगी
,
फिर मुझसे लाड़ करोगी
,
फिर मुझे डाँट मारोगी
,
अच्छा लगता है ,
माँ , तुझसे बात करना
,
घबरा जाता हूँ उस सुबह
,
जिस दिन तुम सपनो में
भी नहीं आती ,
वादा करो माँ ,
सपनो में तो आओगी ,
और मुझे डाँटोगी ,
मैं बड़ा नहीं हुआ माँ
तेरे लिये ,
ताउम्र मुझे तेरी जरुरत
पड़ेगी।
गुजारिश है या कह लो
प्रार्थना ,
जिनके पास "माँ"
महफूज है अभी ,
उसे सबसे बड़ी दौलत समझना
,
उसके कदमो के नीचे जन्नत
,
उसे ही जीता जागता खुदा
या भगवान समझना।
( माँ की यह फोटो उनके अंतिम दिनों की फोटो है , जब वह इलाज के लिए नोएडा में मेरे साथ थी। बालकनी से निहारती माँ को शायद एहसास था की अब उन्हें वापस जाना है और वह जैसे ईश्वर की कायनात को आँखों में बसा लेना चाहती थी। )
Very touching anand. I can feel thenpain and loneliness u must be feeking
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteमां 🙏
ReplyDeleteWah Sir. Bahut acha likha.
ReplyDeleteMaa ki barabari koi nahi kar sakta
बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है मन की भावनाओ को... माँ के प्रति असीम प्यार...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteइसके आगे अब सिर्फ भावनाएं ही महसूस हो सकती हैं
Very nice lines. It's touching in hearts❤💞. 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteTusi great ho pa ji,
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