ये धरती न मेरी है , न तुम्हारी
हम सिर्फ कुछ समय के
लिए ,
इसके सरंक्षक है ,
यह धरती आने वाली पीढ़ी
की है ,
और हमें यह धरती उन्हें
सौंप कर जाना है ,
जैसे हमें अपनी पुरानी
पीढ़ी से थाती के रूप में मिली है।
हम ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ
रचना ही ,
इस धरती को सँवारने और
बिगाड़ने के जिम्मेदार है ,
बाकी ईश्वर की जीवित
रचनाये तो आज भी वैसी ही जी रही है ,
जैसे वो सदियों से जीती
आ रही है,
हमें ही जिम्मेदारी लेनी
होगी ,
इसके अच्छे या बुरे की
,
और हमें ही परिणाम भुगतना
होगा,
हमारी संतति हमें बस
इसी के लिए याद रखेगी।
सच है
ReplyDeleteधरती सबकी होते हुए भी किसी के नहीं है