अकेला बैठा हूँ लेकिन अकेला नहीं हूँ ,
इक यादों की गठरी है
, गाँठ खोल रहा हूँ।
परत दर परत संजो कर रखी
है यादें ,
उनको झाड़कर फिर करीने
से रख रहा हूँ।
इक परत में बचपन झाँक
रहा है ,
इक परत में माँ बाबूजी
का दुलार छलक रहा है।
वो पहले गुरु जी रौबीले
से दिख रहे है इक परत में ,
विद्यालय का वो आँगन
चहक रहा है।
कुछ बचपन के दोस्त कंधे
में हाथ रखकर अब भी खड़े है ,
मैं ही शायद उन्हें छोड़
गया वो तो अब भी वही अड़े है।
वो मेरे पुरखो का बनाया
घर का आँगन बिलकुल नहीं बदला है ,
मेरे पास ही उसकी सुध
लेने का अब समय नहीं है।
विद्यालय की वह प्रार्थना
अब भी कानो में गूंजती है,
कैसे भूल गया मैं , शायद
मुझमे ही कोई कमी है।
वो सपने दबे पड़े है इक
परत में , कितनी धूल जम गयी है ,
झाड़ा जरा तो मेरी ही
हँसी छूट रही है।
इक परत में अब भी जज्बात
बंद पड़े है ,
रिस रहा है जैसे अंदर
कुछ पिघल रहा है।
समय की गति का भी क्या
चक्कर है ,
भागते रहे उम्र भर ,
परिणाम वही सिफर है।
हासिल है तो ये कुछ यादें
ही है , तह करके रखता हूँ फिर से ,
कुछ की तुरपाई कर आगे
बढ़ना ही है, यही तो जीवन सफर है।
अकेला नहीं हूँ मैं कभी
भी इस राह में , न जाने कितनी दुआओ का असर है,
न कोई गिला , न सिकवा
किसी से , जो मिला , वो क्या कम है।
अभी सफर लम्बा तय करना
है , न जाने कितनी और परतें जुड़ेगी ,
जरुरी है समय निकालूँ
और टटोलू - यही यादें तो असली पूँजी है।
Dadi ye jivan hai,yaado key Bina Kuch Nahi. Bas yaadein acchi honi Chahiye.
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