तुम जब आओगी
मेरे पहाड़ ,
मैं तुम्हें
उस धार में ले जाऊँगा ,
जहाँ से दिखता
है हिमालय ,
और उससे आती
इक नदी ,
दृश्य कितने
नयनाभिराम ,
उस धार के
ढुंग पर ,
बैठकर हम करेंगे
ढेरों बात ,
मैं तुम्हे
दूँगा इक बुराँश का फूल ,
जुड़े में गुँथने
के लिये नहीं ,
खाने के लिये
,
हाँ , खाया
भी जाता है ये फूल ,
ठण्डी हवाएँ
बहती है उस धार में ,
उस धार में
इक मंदिर भी है
कहते है -
हर मन्नत पूरी होती है वहाँ ,
मगर , मुझे
मत माँगना उनसे ,
माँगना अपनी
खुशियाँ ,
और फिर उतर
जाना ,
चली जाना समेटे
यादों को ,
कभी मन करेगा
तो ,
आ जाना - मैं
वही मिलूँगा,
उस धार के
पास ,
निहारते श्वेत
धवल हिमकिरीट ,
और ऊपर मेरे
नीला आकाश।
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कुमाउँनी शब्द
धार - पहाड़
की चोटी
ढुंग - बड़ा
पत्थर