Tuesday, September 14, 2021

धार

तुम जब आओगी मेरे पहाड़ ,

मैं तुम्हें उस धार में ले जाऊँगा ,

जहाँ से दिखता है हिमालय ,

और उससे आती इक नदी ,

दृश्य कितने नयनाभिराम ,

उस धार के ढुंग पर ,

बैठकर हम करेंगे ढेरों बात ,

मैं तुम्हे दूँगा इक बुराँश का फूल ,

जुड़े में गुँथने के लिये नहीं ,

खाने के लिये ,

हाँ , खाया भी जाता है ये फूल ,

ठण्डी हवाएँ बहती है उस धार में ,

उस धार में इक मंदिर भी है

कहते है - हर मन्नत पूरी होती है वहाँ ,

मगर , मुझे मत माँगना उनसे ,

माँगना अपनी खुशियाँ ,

और फिर उतर जाना ,

चली जाना समेटे यादों को ,

कभी मन करेगा तो ,

आ जाना - मैं वही मिलूँगा,

उस धार के पास ,

निहारते श्वेत धवल हिमकिरीट ,

और ऊपर मेरे नीला आकाश। 

 

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कुमाउँनी शब्द

धार - पहाड़ की चोटी

ढुंग - बड़ा पत्थर



Thursday, September 9, 2021

भस्मासुर

 

सर्वश्रेष्ठ कृति ईश्वर की ,

स्वंभू बुद्धिमान प्रजाति धरा की ,

खुद के विकास के लिये ,

ललक भस्मासुर बनने की।

 

चाह सब कुछ मुट्ठी में करने की,

नियंत्रण चाहता ब्रह्माण्ड की ,

ज़िंदा एक पतली सी डोर साँसो की ,

कर्म उसमे भी खलल करने की।

 

दौड़ रहा न जाने क्या पाने को ,

मर रहा तिल - तिल अमर हो जाने को ,

सीधी सी बात न आ रही समझ में ,

ढूँढ रहा रास्ता "भस्मासुर" बन जाने को।

 

Friday, September 3, 2021

बेज़ारी

 

हर घड़ी बदल रहा मंज़र , आबोहवा हलकान। 

लम्हा-लम्हा गुजर रहा सफर , बची रहे मुस्कान।।

 

चंद साँसो की लड़ी है ज़िंदगी, ख्वाइशें तमाम। 

ज्वार से उठता है मनोभावों का , मन परेशान।।

 

फ़क़त इक सफर तय करना है, सामान तमाम।

खाली हाथ आना -जाना , क्या नफा , क्या नुकसान।।

 

जो हाथ में है , सामने है - उसी पर इख़्तियार। 

कल की चिंता में हरदम , जीवन क्यों है बेज़ार।।