सर्वश्रेष्ठ कृति ईश्वर की ,
स्वंभू बुद्धिमान
प्रजाति धरा की ,
खुद के विकास
के लिये ,
ललक भस्मासुर
बनने की।
चाह सब कुछ
मुट्ठी में करने की,
नियंत्रण चाहता
ब्रह्माण्ड की ,
ज़िंदा एक पतली
सी डोर साँसो की ,
कर्म उसमे
भी खलल करने की।
दौड़ रहा न
जाने क्या पाने को ,
मर रहा तिल
- तिल अमर हो जाने को ,
सीधी सी बात
न आ रही समझ में ,
ढूँढ रहा रास्ता
"भस्मासुर" बन जाने को।
Very well written. Great message..
ReplyDelete100% true
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