हर घड़ी बदल
रहा मंज़र , आबोहवा हलकान।
लम्हा-लम्हा
गुजर रहा सफर , बची रहे मुस्कान।।
चंद साँसो
की लड़ी है ज़िंदगी, ख्वाइशें तमाम।
ज्वार से उठता
है मनोभावों का , मन परेशान।।
फ़क़त इक सफर
तय करना है, सामान तमाम।
खाली हाथ आना
-जाना , क्या नफा , क्या नुकसान।।
जो हाथ में
है , सामने है - उसी पर इख़्तियार।
कल की चिंता
में हरदम , जीवन क्यों है बेज़ार।।
👌🙏
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