Friday, September 3, 2021

बेज़ारी

 

हर घड़ी बदल रहा मंज़र , आबोहवा हलकान। 

लम्हा-लम्हा गुजर रहा सफर , बची रहे मुस्कान।।

 

चंद साँसो की लड़ी है ज़िंदगी, ख्वाइशें तमाम। 

ज्वार से उठता है मनोभावों का , मन परेशान।।

 

फ़क़त इक सफर तय करना है, सामान तमाम।

खाली हाथ आना -जाना , क्या नफा , क्या नुकसान।।

 

जो हाथ में है , सामने है - उसी पर इख़्तियार। 

कल की चिंता में हरदम , जीवन क्यों है बेज़ार।।


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