हर ढलती शाम में ,
सूरज को निहारता हूँ ,
दूर , बहुत दूर ,
उसको ढलते देखता हूँ ,
अँधेरे के कोहरे को ,
धीरे -धीरे बढ़ते देखता हूँ ,
फिर सब ओर कालिमा ,
जुगनू जैसे चमकते ,
आसमां के सितारे देखता हूँ ,
जीवन कितना अद्भुत ,
संभावना भरा ,
रोशनी और अन्धकार ,
के दहलीज पर खड़ी ,
एक देह को ,
अंतर्मन की पुकार ,
पर अपना रास्ता चुनते ,
देखता हूँ।
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब सृजन।
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