Thursday, May 12, 2022

शाम

 

हर ढलती शाम में ,

सूरज को निहारता हूँ ,

दूर , बहुत दूर ,

उसको ढलते देखता हूँ ,

अँधेरे के कोहरे को ,

धीरे -धीरे बढ़ते देखता हूँ ,

फिर सब ओर कालिमा ,

जुगनू जैसे चमकते ,

आसमां के सितारे देखता हूँ ,

जीवन कितना अद्भुत ,

संभावना भरा ,

रोशनी और अन्धकार ,

के दहलीज पर खड़ी ,

एक देह को ,

अंतर्मन की पुकार ,

पर अपना रास्ता चुनते ,

देखता हूँ।  

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