Thursday, May 26, 2022

बरगद

 

एक चौराहे का बरगद ,

सब देख रहा था ,

बरगद था , इसीलिये बचा था ,

समय का इक लम्बा दौर ,

उसके चारों ओर मढ़ा था ,

हर झूलती शाख उसकी ,

इतिहास की गवाह थी ,

हर जड़ पर जैसे उसके ,

शताब्दियाँ गढ़ी थी ,

हर दौर की निशानियाँ ,

उसके तनों में अंकित थी ,

वो बूढ़ा बरगद ढह जाना चाहता था ,

उसने हवाओं से मिन्नतें की थी ,

न जाने कितने जीवों का आसरा वो ,

उसे शिकायत सिर्फ इंसानो से थी ,

इंसानी चरित्र को वो रोज़ ,

बदलते देख रहा था,

जिस डाल पर बैठा वो ,

उसी को काटते देख रहा था,

अब वह अपनी जड़ें तक सूखा देना चाहता था ,

पता है उसको अब ,

उस जगह को भी खुदना है अब ,

जहाँ वो सहस्त्रों साल से खड़ा था ,

एक नयी सड़क गुजरनी है अब वहाँ से ,

बुलडोजरों की धड़धड़ाहट से ,

वो अब धीरे -धीरे सूख रहा था।


1 comment:

  1. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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