किसी ने मुझसे कहा ,
तुम बहुत हल्के दर्जे के कवि हो ,
ऊपर से , हिन्दी में लिखते हो ,
तुर्रा ये , खुद को कवि कहते हो ,
तुम्हारी कवितायेँ साहित्य श्रेणी में नहीं आती ,
तुम्हारी हर कविता में कोई न कोई कमी है ,
प्रेम पर तुम्हारा
ज्ञान अधूरा है ,
सामयिक विषयों में समझ की कमी है ,
रस ,लय या अलंकार भी कोई चीज होती है ,
चंद पिरोये शब्दों से कोई कविता नहीं बनती है,
तुकबंदी भी आपसे ढंग से नहीं होती है,
कलम की धार तुम्हारी कच्ची है ,
तुम्हारी लिखाई दिल को चुभती है ,
तुम्हारी लेखनी बस इक उम्मीद देती है ,
वास्तविकता के धरातल से परे होती है ,
तुम बस आवेश के वशीभूत लिख देते हो ,
शायद खुद के लिये ही लिखते हो ,
मैं , निरुत्तर , बस सुने जा रहा था ,
बस इतना सा बोल पाया ,
दिल की गहराइयों से बहुत -बहुत धन्यवाद ,
बस आप ही हो जो मुझे गंभीरता से पढ़ते हो।