Saturday, August 27, 2022

ये वक्त गुजर जायेगा।

 

मेरे पास एक अच्छी खबर है ,

और एक बुरी खबर है ,

बताओ पहले कौन सी सुनोगे ,

अच्छी खबर पहले सुनोगे ,

तो फिर बुरी खबर को टाल जाओगे ,

बुरी खबर सुनोगे तो ,

अच्छी खबर पर कहा ध्यान लगा पाओगे ,

ख़बरें दोनों सही और सच्ची है ,

बोलो , पहले कौन सी सुनोगे ?

ऐसा नहीं हो सकता क्या ,

दोनों को मिलाकर सुना दो ,

हो सकता है , तो सुनो ,

"ये वक्त गुजर जायेगा। "

Wednesday, August 17, 2022

हल्के दर्जे का कवि

 

किसी ने मुझसे कहा ,

तुम बहुत हल्के दर्जे के कवि हो ,

ऊपर से , हिन्दी में लिखते हो ,

तुर्रा ये , खुद को कवि कहते हो ,

तुम्हारी कवितायेँ साहित्य श्रेणी में नहीं आती ,

तुम्हारी हर कविता में कोई न कोई कमी है ,

प्रेम पर तुम्हारा  ज्ञान अधूरा है ,

सामयिक विषयों में समझ की कमी है ,

रस ,लय या अलंकार भी कोई चीज होती है ,

चंद पिरोये शब्दों से कोई कविता नहीं बनती है, 

तुकबंदी भी आपसे ढंग से नहीं होती है,

कलम की धार तुम्हारी कच्ची है ,

तुम्हारी लिखाई दिल को चुभती है ,

तुम्हारी लेखनी बस इक उम्मीद देती है ,

वास्तविकता के धरातल से परे होती है ,

तुम बस आवेश के वशीभूत लिख देते हो ,

शायद खुद के लिये ही लिखते हो ,

मैं , निरुत्तर , बस सुने जा रहा था ,

बस इतना सा बोल पाया ,

दिल की गहराइयों से बहुत -बहुत धन्यवाद ,

बस आप ही हो जो मुझे गंभीरता से पढ़ते हो।

Thursday, August 11, 2022

प्रेम गति

 

" मांगो , राधा -कुछ भी माँगो ,

मैं तुम्हे सब कुछ दे सकता हूँ ,"

द्वारकादीश बोले बूढ़ी राधा से ,

राधा एकदम निहार रही थी ,

द्वारकादीश में "कान्हा " ढूँढ रही थी ,

खोई हुई मग्न यादों में ,

" माँगो ,राधा , माँगो " से चेती थी ,

कृष्ण आप द्वारकादीश हो ,

जानती हूँ -सब दे सकते हो ,

मैं “द्वारकादीश” से कुछ नहीं चाहती ,

"कान्हा " बन कुछ दे सकते हो तो बोलो ,

बँसी पर क्या वही तान छेड़ सकते हो ?

कान्हा ने मुरली अधरों से लगायी ,

तान छेड़ी राधा सुध-बुध खो बैठी ,

कान्हा बंद चक्षु सुर छेड़ गए ,

स्वरलहरियों में राधा समाई ,

नेत्र खुले जब द्वारकादीश के ,

राधा कहीं नजर न आई ,

ध्यान गया जब बाँसुरी पर ,

हल्की बाँसुरी जरा भारी पाई ,

कृष्ण हौले से मुस्कराये ,

राधा -कृष्ण के प्रेम ने अंततः गति पायी। 

 

( ऐसा वर्णित है कि राधा वृद्धावस्था में कृष्ण से मिलने द्वारका गयी थी और वही उनके अलौकिक और दिव्य प्रेम का पटाक्षेप हुआ था , जो भौतिक न होकर आध्यात्मिक प्रेम था। )