Thursday, August 11, 2022

प्रेम गति

 

" मांगो , राधा -कुछ भी माँगो ,

मैं तुम्हे सब कुछ दे सकता हूँ ,"

द्वारकादीश बोले बूढ़ी राधा से ,

राधा एकदम निहार रही थी ,

द्वारकादीश में "कान्हा " ढूँढ रही थी ,

खोई हुई मग्न यादों में ,

" माँगो ,राधा , माँगो " से चेती थी ,

कृष्ण आप द्वारकादीश हो ,

जानती हूँ -सब दे सकते हो ,

मैं “द्वारकादीश” से कुछ नहीं चाहती ,

"कान्हा " बन कुछ दे सकते हो तो बोलो ,

बँसी पर क्या वही तान छेड़ सकते हो ?

कान्हा ने मुरली अधरों से लगायी ,

तान छेड़ी राधा सुध-बुध खो बैठी ,

कान्हा बंद चक्षु सुर छेड़ गए ,

स्वरलहरियों में राधा समाई ,

नेत्र खुले जब द्वारकादीश के ,

राधा कहीं नजर न आई ,

ध्यान गया जब बाँसुरी पर ,

हल्की बाँसुरी जरा भारी पाई ,

कृष्ण हौले से मुस्कराये ,

राधा -कृष्ण के प्रेम ने अंततः गति पायी। 

 

( ऐसा वर्णित है कि राधा वृद्धावस्था में कृष्ण से मिलने द्वारका गयी थी और वही उनके अलौकिक और दिव्य प्रेम का पटाक्षेप हुआ था , जो भौतिक न होकर आध्यात्मिक प्रेम था। )

 


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