नहीं , वो मर नहीं सकता ,
फफक -फफक वो रो पड़ी ,
गयी भी नहीं देखने ,
अंतिम बार उसका चेहरा ,
बंधनो में जकड़ी थी ,
याद था उसको वादा ,
जो वर्षों पहले उसने ,
किया था एक दिन ,
उसने भी दोहराया था ,
बीत गए थे न जाने कितने वसंत ,
वादा मगर हमेशा ताजा रहा ,
उम्मीद पर अनगिनत दिन गुजर गए ,
साँझ हो गयी जीवन की ,
मगर वादा बूढ़ा न हुआ ,
आज ऐसी अनहोनी कैसे हो गयी ,
वो कैसे जा सकता था ?
अब तो मिलने के लिए ,
शायद उसको भी ,
उस पार जाना ही होगा,
बस "धड़ाम " की हल्की आवाज हुई ,
उस पार शायद मिलन ,
जरूर हुआ होगा,
इस पार तो उनका प्रेम ,
बेड़ियों में ही जकड़ा रहा।
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