हाथ जोड़े तट पर बीत गए दिन तीन ,
जलाधीश का फिर भी मन न पिघला,
आँख बंद , ध्यान लगाए एक शिला पर ,
करते रहे याचना, स्तुति करे जगदीश।
लक्ष्मण पुनि -पुनि समझाये ,
सामर्थ्य पर विश्वास करो कौशलधीश ,
शांति से जहाँ सुलझ जाये बात ,
क्यों उपयोग करो तूणीर –तीर कहे कुलधीश ।
अनुनय -विनय गुण है वीर का ,
उसको सुशोभित होती है ,
युद्ध तो बहुत सरल मार्ग है ,
तलवार फिर शीश माँगती है।
जड़बुद्धि विनय समझ न पाया ,
लोभी से कैसे दान की आशा ,
कुटिल न समझे प्रीत की भाषा ,
धैर्य , संयम की भी एक सीमा।
लाओ , लक्ष्मण - तूणीर लाओ ,
अब धनुष पर अग्नि बाण संधान होगा ,
सूखा दूँगा इस जलातिरेक को ,
इस मूर्ख को अब ज्ञान न दूँगा।
क्रोधित राम की आँखे हुई लाल ,
प्रत्यंचा चढ़ा , धनुष हाथ लेकर की टँकार ,
कांप उठे सब जल -थल- आकाश चराचर ,
"त्राहिमाम-त्राहिमाम " जग गया सागर।
प्रकृति विधान सब आपका प्रभु ,
सब आपके आदेश अधीन ,
मैं जड़बुद्धि कैसे न मानूँ ,
जब साक्षात् खड़े हो जगदीश।
युक्ति मैं बतलाता हूँ ,
सागर पार कराता हूँ ,
रामकाज में विघ्न कैसा ,
खुद का परलोक सुधारता हूँ।