Thursday, February 20, 2025

आपाधापी

 

जीवन की आपाधापी में ,

सब कुछ जैसे छूट रहा है ,

ज्यूँ - ज्यूँ आगे बढ़ना है ,

त्यूँ - त्यूँ कुछ छूट जाना है।

 

रोज़ नई मशक्कत जीवन की ,

कुछ पाना कुछ खोना है ,

अधरों में मुस्कान लिये मुसाफिर ,

रोज थोड़ा हँसना , थोड़ा रोना हैं।

 

वक्त कहाँ थोड़ा सुकून के लिये ,

ये भी करना है , वो भी भरना है ,

कस्तूरी मृग सा , मृगतृष्णा सी  ,

कभी यहाँ , कभी वहाँ भटकना है।

 

दौड़ लगी हैं बड़ी भयंकर,

सब कुछ समेट लेना है ,

भोग्य को भोग सके तक,

खुद भोग हो जाना है।

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