सर्द शुरुआत हुई थी ,
सर्द ही अब समाप्त
होगा ,
आलम -ऐ - दिसंबर ये है ,
जनवरी का लिया हुआ
इक ,
अधूरा प्रण बरबस दिल पर ,
नोक की तरह चुभ
रहा है।
समझा रहा हूँ बार -बार ,
नये साल पर फिर दोहराऊँगा
,
यह साल तो
बीत गया अब ,
कोशिश करूँगा अगले साल ,
प्रण को हरगिज निभाऊँगा
,
दिमाग हँस रहा है , कह रहा ,
मत करना कोई
प्रण नये साल।
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