Thursday, December 4, 2025

दिसंबर

 

सर्द शुरुआत हुई थी ,

सर्द ही अब समाप्त होगा ,

आलम - - दिसंबर ये है ,

जनवरी का लिया हुआ इक ,

अधूरा प्रण बरबस दिल पर ,

नोक की तरह चुभ रहा है। 

 

समझा रहा हूँ बार -बार ,

नये साल पर फिर दोहराऊँगा ,

यह साल तो बीत गया अब ,

कोशिश करूँगा अगले साल ,

प्रण को हरगिज निभाऊँगा ,

दिमाग हँस रहा है , कह रहा ,

मत करना कोई प्रण नये साल। 

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