आँगन छूटा, गाँव छूटा , पीछे छूटा वो परिवेश !
छूट गयी बचपन की वो गलियाँ, जो गूंजता था हर रोज़ !
पीछे रह गयी सब वो यादों, जब हम चल दिए थे इक रोज़ !
बेफिक्री के वो दिन अब कितने आते याद,
काश ! फिर लौट आते वो दिन जहाँ सिर्फ हमारा था राज !
चंद कागज़ के टुकडो को इकट्ठा करने के लिए,
क्या क्या खो दिया हमने आज आता हैं याद !
कहती हैं वो गलियाँ आज, आ जाओ मेरे प्यारो ,
फिर से करो हमें आबाद !
हम नहीं बदले आज भी, तुम कितने बदल गए हो आज !
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteaap ki is kavita se to gaon mein bitaye gaye purane dino ki yaad taja kar di. thanks
ReplyDeletefrom - Mahendra
Sach main gaon ki yaad aa gayi, sir. Keep it up
ReplyDeleteExtremely touching,keep it up !!!
ReplyDelete