Thursday, April 8, 2010

छोड़ आये हम वो गलियाँ ...............................

आँगन छूटा, गाँव छूटा , पीछे छूटा वो परिवेश !
छूट गयी बचपन की वो गलियाँ, जो गूंजता था हर रोज़ !
पीछे रह गयी सब वो यादों,  जब हम चल दिए थे इक रोज़ !
बेफिक्री के वो दिन अब कितने आते याद,
काश ! फिर लौट आते वो दिन जहाँ सिर्फ हमारा था राज !
चंद कागज़ के टुकडो को इकट्ठा करने के लिए,
क्या क्या खो दिया हमने आज आता हैं याद !
कहती हैं वो गलियाँ आज, आ जाओ मेरे प्यारो ,
फिर से करो हमें आबाद !
हम नहीं बदले आज भी, तुम कितने बदल गए हो आज !

4 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  2. aap ki is kavita se to gaon mein bitaye gaye purane dino ki yaad taja kar di. thanks
    from - Mahendra

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  3. Sach main gaon ki yaad aa gayi, sir. Keep it up

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  4. Extremely touching,keep it up !!!

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