घुट घुट कर जीते रहे,
खून के आंसू पीते रहे.
जानते हुए भी खामोश थे,
गर्दन नीचे किये चलते रहे,
जानते थे बहुत कुछ गलत हो रहा हैं,
मगर आदतन खामोश रहे,
क्यों .....
शायद कौन पहल करे ,
यही सोच सोच कुड़ाते रहे,
फिर .....
एक दिन एक व्यक्ति ने हिम्मत दिखाई ,
विरोध का बिगुल फूँका ,
तो हमारे अन्दर सहमा कुचला और उपेक्षित इंसान जाग उठा.
सबको जैसे पंख लग गए.
एक एक के जुड़ने से सैलाब बन गया.
जनशक्ति का एहसास सरकार को भी हो गया.
जय हो अन्ना ! हम तुम्हारे आभारी हैं,
तुमने हमारे अन्दर के इंसान को जगा दिया.
( Suppot Anna Hajare, this veteran is fighting for us for our better tommorrow)
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