"हुबली,कर्नाटक से ट्रेन
पकड़ी निकला दिल्ली
ओर, 38 घंटे
के सफर में
साथ न था
कोई और !
साफ़ सुथरे हुबली स्टेशन
पर समय पर
लग गयी ट्रेन,बैठ गए जी
चल दी अपनी ट्रेन
!!
लोंडा जंक्शन पर जा
जाकर रुक गए
ट्रेन के चक्के,
पता चला यहाँ
से बदले जायेंगे डब्बे !
गोवा एक्सप्रेस
आयी वास्को से
, डब्बे लगा दिए
गए उसके
पीछे !!
बेलगाम एक जगह
आयी, अब ट्रेन
में जमकर सवारी
आयी !
"मील्स
ओन व्हील्स " के एक
भाई साहब की
"खाना ले लो"
की आवाज आयी
!!
खा पीकर हम
सो गए , कुछ
शोर हुआ तो आँख
खुली !
नीचे वाले भाई साहब
बैग कंधे में
डाले उतर रहे
थे , पूछा तो
बोले हम पुणे
आ गए !!
ये ट्रेन भी गजब
चीज हैं , कोई
भेदभाव नहीं करती
!
हिन्दू, मुस्लिम , सिख , ईसाई
- सबको अपने चक्को
से खींचती !!
कोई छात्र, कोई सरकारी
बाबू, कोई फौजी , कोई प्राइवेट
नौकर, कोई व्यापारी !
बिना भेदभाव के बस
सीटी बजाकर सरपट
दौड़ती जाती !!
पहुंची ट्रेन फिर एक
स्टेशन - नाम था
मनमाड , वहाँ मिल
रहे थे १००
रुपये में तीन किलो
अनार !
दिल्ली पहुँचते पहुँचते कैसे
हो जाते हैं
यही १५० रुपये
में एक किलो
अनार !!
मध्य प्रदेश पहुँच गए
आप , मोबाइल में
एक सन्देश आया
!
ट्रेन एक स्टेशन
पर रुकी , नाम
देखकर मैं भी
चौंका !!
खांडवा था स्टेशन का
नाम , किशोर कुमार
साहब के कुछ
गाने याद आ
गए !
मानसून की बारिश
से मिटटी की
भीनी भीनी खुशबू
आ रही थी,
खेत फिर तैयार
हो रहे थे
, जुताई चल चल
रही थी !!
मिटटी की रंगत
जगह जगह बदल
रही थी,
कर्नाटक की लाल
मिटटी - महाराष्ट्र में काली
और मध्य
प्रदेश में
धूसर हो रही
थी !
पठारों की उच्चाई
अब कम हो
थी, हुबली से
चली ठंडी हवाएँ
अब गर्म हो
चुकी थी !!
सूरज अब धीरे
धीरे डूब रहा
था , सामने इटारसी स्टेशन
आ रहा था
!
इटारसी में ट्रैको
का जाल बिछा
था , मध्य रेलवे का सारा
भार शायद इसी पर
था !!
फिर ट्रेन ने रफ़्तार
पकड़ी , अगला स्टेशन
भोपाल था !
अब रात हो
चुकी थी , हल्की
हल्की ठंडी हवाओ
का झोंका आया
था !!
मानसून की बरसात
का भोपाल में
एहसास हुआ, झमाझम
बारिश से नवाबो
का शहर गुलजार
हुआ !
रात के दस
बज चुके थे
, बर्थ की बत्तियाँ
किसी ने बुझा
दी और हमारा भी
नींद की आगोश
में समाना हो
गया !!
सुबह आँख खुली
तो फरीदाबाद का
स्टेशन दिखा , झाँसी
- ग्वालियर - आगरा - मथुरा सब
रात रात में
ही गुजर गया
था !
३८ घंटे का
सफर निजामुद्दीन स्टेशन
पर ख़त्म हो
चूका था , ट्रेन
६:१० पर
स्टेशन लग गयी
थी जबकि उसे
६:१५ पर
पहुँचना था !!
मन ही मन
रेलवे का समय
पर पहुँचाने का
धन्यवाद किया , बैग पकड़ा
और अपने घर
की ओर चल
दिया !
फिर किसी दिन एक
यात्रा होगी , मेरा कवि
मन फिर ललचायेगा
और अपना यात्रा
वृतांत फिर आपको
सुनायेगा !!"
( हुबली से दिल्ली
तक यह यात्रा
मैंने 5 जुलाई से शुरू
की और 7 जुलाई
को मैं दिल्ली
पहुँचा और
चूंकि साथ में
कोई नहीं था
, अपनी यात्रा को आप
तक पहुचाने के
लिए कलम का
सहारा लिया )