शब्दों की सीमा पता चल गयी , समझ गया कलम का रुकना !
इतना सा कहना हैं और लिखना हैं - कलाम सर , लौट के जरूर आना !!
आँखे नम हैं , दिल भारी , कागज भी फड़फड़ा रहा - हे ! भारत रत्न देखो आज आसमान भी जार जार रो रहा !
तुम चिरनिद्रा में सो गए , हे ! कर्मयोगी युगपुरुष हमसे रूठ क्यों चले गए !!
क्या लिखूं , कैसे परिभाषित करूँ - कैसे तुम अब्दुल से कलाम बने ? !
कहाँ से शुरू करूँ , कहाँ ख़त्म करू - कैसे तुम रामेश्वरम से भारत माँ के लाल बने ? !!
शब्दों की भी अपनी एक सीमा हैं , तुम उससे परे !
हे ! मानवता के अग्रदूत - अब्दुल , तुम "कलाम" को सही अर्थ दे गए !!
Wonderful poetry, nice way to give tribute to Dr Kalam.your words are so emotional.
ReplyDeleteWonderful poetry, nice way to give tribute to Dr Kalam.your words are so emotional.
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