Monday, July 27, 2015

कलाम सर , लौट के जरूर आना.......


शब्दों की सीमा पता चल गयी , समझ  गया कलम का रुकना !
इतना सा कहना हैं  और लिखना हैं - कलाम सर , लौट के जरूर आना !!

आँखे नम हैं , दिल भारी , कागज भी फड़फड़ा रहा - हे ! भारत रत्न देखो आज आसमान भी जार जार रो रहा !
तुम चिरनिद्रा में सो गए , हे ! कर्मयोगी युगपुरुष हमसे रूठ क्यों चले गए !!

क्या लिखूं , कैसे परिभाषित करूँ - कैसे तुम अब्दुल से कलाम बने ? !
कहाँ से शुरू करूँ , कहाँ ख़त्म करू - कैसे तुम रामेश्वरम से भारत माँ के लाल बने ? !!

शब्दों की भी अपनी एक सीमा हैं , तुम उससे परे !
हे ! मानवता के अग्रदूत - अब्दुल , तुम "कलाम" को सही अर्थ दे गए !!  

2 comments:

  1. Wonderful poetry, nice way to give tribute to Dr Kalam.your words are so emotional.

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  2. Wonderful poetry, nice way to give tribute to Dr Kalam.your words are so emotional.

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