एक मित्र मिले रास्ते में , हाथ मिलाया और पूछा ," कैसे हैं ?" !
हमने भी वही रटा रटाया दिया जवाब - " बढ़िया , आप सुनाओ " !!
फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ और पंद्रह मिनट तक चला !
हमने ऑफिस से बात शुरू की , मोहल्ले वालो की टांग खींची !!
थोड़ी राजनीती की ऐसी तैसी करी , फिर थोड़ा सोसाइटी में हो रहे बदलावों की फिक्र करी !
"अच्छा यार संडे को फुर्सत से बात करते हैं " कहकर हाथ मिलाया और अपने घर की राह पकड़ ली. !!
घर आया , थोड़ा सुस्ताया और सोचा , " जब इतना कुछ
हो रहा हैं , तो कैसे कोई बढ़िया हो सकता हैं ?" !
नौकरी का मेरे कल का भरोसा नहीं , कोई कुछ मदद करेगा
ऐसे मेरे करम नहीं !!
बच्चों को कुछ सँस्कार दे सकूँ , इसके लिए फुर्सत नहीं
!
राजनीति में कुछ असर असर डाल सकूँ , चुनाव के दिन वोट
मैं डालता नहीं !!
कुछ अपने भविष्य के बारे में सोचूं , कुछ सूझता नहीं
!
खर्चे बढ़ गए हैं अब सैलरी से कुछ होता नहीं !!
सामाजिकता मेरी फेसबुक और व्हाट्सप्प में सिमट गयी हैं
, पडोसी को में जानता नहीं !
सेहत के लिए कुछ करने की सोचूं तो पार्क मेरे घर के
नजदीक कोई हैं नहीं !!
मिलावटी खाना खा खाकर बीमार सा हो गया हूँ , ताज़ी हवा के लिए पेड़ पौधे
नहीं !
अब आपसे पूछता हूँ , " कैसे हैं आप ? " , बढ़िया
हूँ कहना नहीं !!
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