'आनंद' इस संसार में लगी हुई दौड़ !
भाग रहे हैं सब बेतहाशा - पता नहीं किस ओर !!
गरीब दौड़ रहा रोटी की खातिर , अमीर दौड़ रहा और
अमीरी की खातिर !
कोई दौड़ रहा दौलत की खातिर , कोई दौड़ रहा और इज्जत की खातिर
!!
मध्यम वर्ग किंकर्तव्यविमूढ़ सा हैं , उसे कुछ
नहीं सूझ रहा !
थोड़ा हैं , और थोड़े के लिए वो भी जूझ रहा !!
सबकी दौड़ का मकसद अपना अपना , इंसानियत की खातिर
कोई दौड़े, मुश्किल हैं ढूँढना !
इस दौड़ में कोई कुचल रहा , कोई कराह रहा और कोई
डींगे हांक रहा !!
लक्ष्य क्या हैं और कहाँ पहुँचना हैं ? यक्ष
प्रश्न हैं किसी को नहीं पता हैं !
आत्मा कचोटती हैं हर दिन , फिर भी अगले दिन दौड़
में शामिल होना हैं !!
हर कोई इस दौड़ में बस आगे - और आगे रहने का मंसूबा
पाले हैं !
कुचले चाहे नैतिक मूल्य कितने ही , दौड़ में बस
आगे रहना हैं !!
कुछ लोग इस अंधी दौड़ से किनारे हो गए हैं
, जीवन के सच्चे अर्थ को समझ गए हैं !
जिंदगी
तो बस वही जी रहे हैं , बाकी सब दौड़ में दौड़े जा रहे हैं !!
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