खुशकिस्मत हैं हम, आज़ाद देश के बाशिंदे
हैं !
गुलामी के दंश
और चाबुक की मार नहीं झेले हैं !!
खुशकिस्मत हैं
हम , आज़ादी विरासत में पाए हैं !
जुल्मो और अत्याचारो
को हमारे पुरखे सहे हैं !!
खुशकिस्मत हैं
हमारे पुरखे , अपना बलिदान दे गए !
हमारे आज के लिए
अपना सर्वस्व त्याग गए !!
खुशकिस्मत हैं
हम , आज़ादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार बन गयी !
परतंत्रता हमारे
लिए किताबी बात हो गयी !!
यक्ष प्रश्न आज
सामने खड़ा और पूछ रहा !
आज़ादी के साथ की
जिम्मेदारी को फिर कैसे भूल गए ? !!
अधिकारों को लेकर
हर जगह हंगामा हैं !
कर्तव्यों के लिए
क्यों सन्नाटा पसरा हैं ?!!
आज़ादी सिर्फ अधिकारों
का झोला नहीं हैं !
इस झोले में कर्तव्यों
का वजन भी भारी हैं !!
आजादी का
जश्न मनाये , कर्तव्यों को याद रखे !
देश हमारी
जिम्मेदारी हैं , इसका हमेशा मान रखे !!
अपनी अगली पीढ़ी
को हमें राह दिखानी हैं !
पुरखो से मिली
इस आज़ादी को सही सलामत उनको देकर जानी हैं !!
( आज़ादी की ७० वीं वर्षगांठ पर देश को समर्पित )
Well written Anand :)
ReplyDeleteWell written Anand :)
ReplyDelete