Saturday, November 19, 2016

बदलाव की बयार ( नोटबंदी )

एक कोशिश हुई कुछ बदलने की , 
जो हम दिल से चाहते हैं !
किसी ने तो पहल की वो दुनिया बनाने की , 
जिसमे हम रहना चाहते हैं !! 

बदलाव की बयार बह रही हैं , 
हमें भी कुछ बदलना होगा !
अपने " आने वाले कल" के लिए,
 " आज " संघर्ष करना होगा !! 

देश आज दोराहे पर खड़ा हैं , 
कोई रास्ता तो चुनना होगा !
या तो ऐसे ही चलते रहो , 
या फिर परिवर्तन का हिस्सा बनना होगा !! 

बेशक अभी परेशानी बहुत हैं , 
हर तरफ हाहाकार हैं !
लोगो के सब्र का ये कड़ा इम्तेहान हैं , 
" देश " के लिए आज यही तो बलिदान हैं !! 

Monday, November 14, 2016

नोटबंदी के साइड इफेक्ट्स

पूरा विपक्ष एकजुट हो गया , भूल गया अपने उसूल !
कालेधन पर हथौड़ा मारा हैं , उनसे पूछे बिना मोदी जी ने शायद कर दी भूल !!

कुछ समय तो देते मोदी जी उनको , ठिकाना लगाना था काला धन !
वर्षो की मेहनत पर उनके , उड़ेल दी सारी धूल !!

"ऐसा भी कोई करता हैं" - एक झटके में ऐसे फैसला लेता हैं !
खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे , सारे देश को कोई क्या  लाइन में लगाता हैं ? !!

 सारा देश लाइन पर लग गया , छोड़ के सारे काज !
क्या ऐसे कोई करता हैं "काले धन " का पर्दाफाश ? !!

 आतंकवादी - आतंक भूल गए , उनके आकाओ को गया पसीना !
दुश्मन भी चित हुआ - बिना वार किये दिखा दिया छप्पन इंची सीना !!

गरीब आज खुश हुआ , मिला उसे बराबरी का ताज !
बड़े बड़े धन्ना सेठो कोचिंतित देखा आज !!

 ऐसा अवसर इतिहास में यदा -कदा ही आता हैं !
जब छोटा नोट , बड़े नोट को उसकी औकात  दिखाता हैं !!

खुल गए खजाने सब , टूट गयी तिजोरियाँ !

बनने चल दिया मेरा 'भारत ' फिर से 'सोने की चिड़िया ' !!

Wednesday, November 9, 2016

ऐ ! सैलरी , जरा धीरे धीरे गुजर। ( सभी वेतनभोगी कर्मचारियों को समर्पित)


तेरे इन्तजार में न दिन देखा-न रात ,
अब आयी हैं तो जरा ठहर !

मुझे तेरे होने का एहसास तो होने दे ,
कुछ वक्त तो मेरे साथ गुजार ले !

तेरे आने की आहट से ही दिल सुकून से भर जाता हैं ,
तेरे जाने पर दिल मेरा जार जार रोता हैं !

जब तक तू मेरे साथ रहती हैं ,
मेरा हर दिन होली , रात दिवाली होती हैं !

तेरे चले जाने के बाद ,
हर दिन बेरंग और रात अमावस होती हैं !

तू तो इतरा कर चली जाती हैं ,
तुझे इल्म नहीं हैं शायद , उसके बाद मुझपर क्या बीतती हैं ? !

तेरे फिर से आने के ख्यालो से जी लेता हूँ ,
हर रोज़ जी और मर लेता  हूँ !

अब आना -तो थोड़ी फुरसत लेकर आना,
कुछ दिन और रुककर मुझे ज़िंदा होने का एहसास करा जाना !

तेरी बाट जोहूंगा ,
हो सके तो समय पर आ जाना ! 

काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक

मोदी जी हद कर दी , 
एक झटके में ५०० और १००० के नोटों की गड्डी रद्दी कर दी !

कितने जतनो से कमाई थी , 
नजर न लगे किसी की , सबसे छुपाई थी !

न जाने कहाँ कहाँ लक्ष्मी माता कैद रखी थी , 
तुम्हारे एक एलान से झटके में मुस्कराई थी !

काली तिजोरियो में हड़कंप हैं , 
पहली बार १०० के नोट के आगे ५०० का नोट बेदम हैं !

अब कैसे लड़े जायेंगे चुनाव -कैसे होगा हवाला कारोबार , 
इस सर्जिकल स्ट्राइक में वाकई दम हैं !

हर बार कुछ गजब कर जाते हो , 
इतना बड़ा जिगर कहाँ से लाते हो ? !

लगता हैं कुछ कर जाओगे , 
इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरो में लिख जाओगे।  

Tuesday, November 8, 2016

पलायन का दर्द




छोड़ कर अपना घोंसला एक दिन , 
उड़ पड़ा  पंछी नया आसमां ढूंढने , 

नए पंखो की उड़ान लंबी थी , 
सब कुछ नाप जाने की ललक भी थी , 

नई उम्मीदे , नए हौंसले 
नव किरण की आस लिए 

माँ ने समझाया - बाप ने बुझाया ,बहनो ने रिझाया - भाइयो ने हड़काया। 
सबकी अनसुनी कर , उड़ चला वो मस्तमौला अपनी दुनिया से अनजानी दुनिया में रम गया।।

वो नयी दुनिया पाकर मस्त हो गया , घोंसला उसका बिखर गया ।  
उसको नया आसमां रास आ गया , पीछे उसका सब कुछ छूट गया।।  

बहुत कुछ मिल गया उसे ,  पा लिया सबकुछ  जिसकी उसको चाह थी।  
मगर बैचैनी थी  कुछ उसे , शायद उस मिटटी में कुछ अलग बात थी।। 

चकाचौंध की अपनी नयी दुनिया में, अब उसे सुकून की तलाश थी।  
रौंदा था जिस मिटटी को बचपन में , शायद उसको उसकी खुशबूं अब भी याद थी।।

स्वंछंद और बेफिक्रे घूमने की शायद  उस पर पाबन्दी थी।  
डरा डरा रहने की शायद , नए आकाश में  मजबूरी थी।।  

Sunday, November 6, 2016

फिजायें कुछ बदली सी हैं .... ( देश की राजधानी और उसके आसपास के वातावरण पर समर्पित कविता )

आबो हवा कुछ बदली सी हैं , कोहरे की चादर ओढे सुबह रो रही  हैं !
सूरज अपनी किरणे भेजता तो हैं , ये अजीब सी धुंध अपने अंदर सोख रही हैं !!

फक्र होता था जिन हवाओ पर कभी , आज वही जहरीली सी क्यों हैं ? !
लगता हैं कही कुछ साजिश हैं , हवाओ को कैद करने की मंशा तो नहीं हैं ? !!

आँखे लहूलुहान , फेफड़ो का दम घुट रहा हैं !
कही इसके लिए हम सब तो जिम्मेदार नहीं हैं ? !!

प्रक्रति तो अपने तय नियमानुसार ही चलती हैं !
जैसे करोगे वैसा भरोगो - बार बार कहती हैं !!

हवाओ ने भी अब सीधा सबक सिखाने की ठान ली हैं !
दंभ और आडंबर ओढ़े हम इंसानो को अपनी करनी याद दिला दी हैं !!