छोड़ कर अपना घोंसला एक दिन ,
उड़ पड़ा पंछी नया आसमां ढूंढने ,
नए पंखो की उड़ान लंबी थी ,
सब कुछ नाप जाने की ललक भी थी ,
नई उम्मीदे , नए हौंसले
नव किरण की आस लिए
माँ ने समझाया - बाप ने बुझाया ,बहनो ने रिझाया - भाइयो ने हड़काया।
सबकी अनसुनी कर , उड़ चला वो मस्तमौला अपनी दुनिया से अनजानी दुनिया में रम गया।।
वो नयी दुनिया पाकर मस्त हो गया , घोंसला उसका बिखर गया ।
उसको नया आसमां रास आ गया , पीछे उसका सब कुछ छूट गया।।
बहुत कुछ मिल गया उसे , पा लिया सबकुछ जिसकी उसको चाह थी।
मगर बैचैनी थी कुछ उसे , शायद उस मिटटी में कुछ अलग बात थी।।
चकाचौंध की अपनी नयी दुनिया में, अब उसे सुकून की तलाश थी।
रौंदा था जिस मिटटी को बचपन में , शायद उसको उसकी खुशबूं अब भी याद थी।।
स्वंछंद और बेफिक्रे घूमने की शायद उस पर पाबन्दी थी।
डरा डरा रहने की शायद , नए आकाश में मजबूरी थी।।
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