Wednesday, July 5, 2017

आओ - कभी

आओ - कभी यूँ ही बतियाते हैं , 
कुछ तुम सुनाओ - कुछ हम सुनाते है।  

बहुत दिन हो गए - रूबरू नहीं हुए हैं, 
समय निकालो , साथ में चाय पीते है ,
यूँ तो फोन से बातचीत हो ही जाती हैं , 
मगर तुम्हारे संग चाय पीने की बात निराली हैं।  

अब समय न होने का बहाना मत बनाना , 
तुम न आ सकते तो हमें ही बुला लेना , 
काम तो रोज़ होंगे और  करने भी पड़ेंगे ,  
आओ , की जरा  फिर से बेबाक हँसेंगे।  

वर्षो बीत गए दिल खोल के हँसे नहीं , 
दिल की बात किसी से कहें नहीं , 
बहुत कुछ खोया - बहुत कुछ पाया ,
हर बार ज़िन्दगी का मतलब अलग समझ आया।  

आओ की जरा दिल का गुबार उड़ाते हैं , 
कुछ तुम सुनाना , कुछ हम सुनाते हैं।  

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