आओ - कभी यूँ ही बतियाते हैं ,
कुछ तुम सुनाओ - कुछ हम सुनाते है।
बहुत दिन हो गए - रूबरू नहीं हुए हैं,
समय निकालो , साथ में चाय पीते है ,
यूँ तो फोन से बातचीत हो ही जाती हैं ,
मगर तुम्हारे संग चाय पीने की बात निराली हैं।
अब समय न होने का बहाना मत बनाना ,
तुम न आ सकते तो हमें ही बुला लेना ,
काम तो रोज़ होंगे और करने भी पड़ेंगे ,
आओ , की जरा फिर से बेबाक हँसेंगे।
वर्षो बीत गए दिल खोल के हँसे नहीं ,
दिल की बात किसी से कहें नहीं ,
बहुत कुछ खोया - बहुत कुछ पाया ,
हर बार ज़िन्दगी का मतलब अलग समझ आया।
आओ की जरा दिल का गुबार उड़ाते हैं ,
कुछ तुम सुनाना , कुछ हम सुनाते हैं।
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