मन के मौसम
हजार ,
बदलते बार
बार ,
कभी जेठ
की दुपहरी सा ,
कभी सावन
की फुहार।
कभी ठंडा
जनवरी सा ,
कभी मार्च
की पुरवाई ,
कभी शांत
समदंर सा ,
कभी नदियाँ
की अंगड़ाई।
कभी बंजर
धरती सा ,
कभी खिले
फूलो के उपवन सा ,
कभी जोश
भरा लबालब ,
कभी पतझड़
सा।
कभी डूबा
डूबा सा ,
कभी हर कोना
खाली सा ,
कभी बजती
शहनाई ,
कभी मौसम
रुसवाई सा।
कभी गुस्से
सा ,
कभी प्यार
के सागर सा ,
घड़ी घड़ी
बदलता रहता है ,
चंचल है
चकोर सा ।