धुंध धुंध सी हैं ज़िन्दगी , कोहरे के मानिंद हैं ज़िन्दगी.
थोडी दूर तक जाती हैं नज़र, फिर धुंध धुंध नज़र आती हैं ज़िन्दगी.
सोचो की अगर दिखता हमें सब कुछ बहुत आगे तक, कैसी होती यह ज़िन्दगी.
चाहे अच्छा हो या बुरा कल में, मगर हमें देखने नहीं देती ज़िन्दगी.
बस धुंध धुंध हैं ज़िन्दगी , कोहरे में समेटे लाखो सवाल , बस निकलती जाती हैं ज़िन्दगी.
जो पीछे छूट जाता हैं, उसको भी यादो के गलियारों में ड्ख लेती हैं ज़िन्दगी,
बस इसी तरह से सरकती जाती हैं ज़िन्दगी. सबकी बस यही कहानी हैं ऐ ! ज़िन्दगी.
अच्छी भावाभिव्यक्ति। सच में जिन्दगी ऐसी ही है।
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