खोल के बाहें अपनी मैं,
उड़ जाना चाहता हूँ,
थामना चाहता हूँ,
सारे आसमान को ,
बस उड़ना चाहता हूँ.
मत रोको मुझ मतवाले को,
मैं बस अपनी धून में जीना चाहता हूँ.
नापना चाहता हूँ सागर की गह्रइयो को,
आसमान में घर बनाना चाहता हूँ.
पर्वतो से दोस्ती कर,
हिमालय को झुकाना चाहता हूँ.
मैं बस जीना चाहता हूँ.
आप सबको २०१० के लिए ढेर सारी शुभकामनाये. भगवान् आपकी जीवन यात्रा को सुखद और मंगलमय बनाये. आप के लिए उन्नति के नए मार्ग खोले और आप सब खुश रहे.
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Thursday, December 31, 2009
Monday, December 28, 2009
आने वाला साल ...२०१०
बीत गया एक और साल,
पीछे छोड़ यादों का सैलाब,
कितनी अच्छी यादो का था ये साल,
कितनी बार रोया होगा दिल जार जार.
जैसा भी रहा यादगार रहा ये साल.
अब नूतन वर्ष के आगमन की हैं तैयारी ,
फिर से जाग गए हैं हजारो अरमान,
एक आश सी बंध गयी हैं फिर से,
लौट आ गया फिर से खुमार.
जो अधुरा रह गया हैं,
पूरा करेंगे अब इस साल.
नए सपनो में रंग भरेंगे,
नए ज़ज्बातों का नया साल !
ले कर आये खुशियाँ सबके जीवन में ,
न हो कोई दिल उदास,
२०१० मंगलमय हो ,
'आनंद' करे प्रभु से यही गुहार.
पीछे छोड़ यादों का सैलाब,
कितनी अच्छी यादो का था ये साल,
कितनी बार रोया होगा दिल जार जार.
जैसा भी रहा यादगार रहा ये साल.
अब नूतन वर्ष के आगमन की हैं तैयारी ,
फिर से जाग गए हैं हजारो अरमान,
एक आश सी बंध गयी हैं फिर से,
लौट आ गया फिर से खुमार.
जो अधुरा रह गया हैं,
पूरा करेंगे अब इस साल.
नए सपनो में रंग भरेंगे,
नए ज़ज्बातों का नया साल !
ले कर आये खुशियाँ सबके जीवन में ,
न हो कोई दिल उदास,
२०१० मंगलमय हो ,
'आनंद' करे प्रभु से यही गुहार.
Monday, December 14, 2009
पिता ......छाँव हैं बरगद की
छोटा सा था उंगलिया थाम उनके चलना सीखा था,
दुनिया देखी थी उनकी नज़रों से,
सब कुछ कितना ख्वाब सा था,
उनके आगोश में मैं खुद को कितना सुरक्षित पाता था,
वो मेरे बालपन की जिद्द को पूरा करने के लिए,
उनका मम्मी से झगड़ना होता था,
मेरी गलती पर मुझे डांट कर उनका चेहरा उतरता था,
वो मेरे लिए बरगद का पेड़ था,
जिसके नीचे मैं बेख़ौफ़ सोता था.
सच में पिता उस खुदा की नियामत हैं ,
खुद नहीं रह सकता सबके साथ ,
इस लिए पिता को पहले भेजता हैं.
बच्चों को राह दिखाने के लिए,
हर किसी को पिता का साया देता हैं.
लगता था कितने निष्ठुर हैं हमारे पिता,
कलेजे पर पत्थर रख कर देते थे कभी जब सजा,
मन ही मन रोते थे ये हमें भी था पता,
आज जो भी हैं उसका कारण हैं पिता.
नहीं कर सकते हम क़र्ज़ उनका अदा,
बस ! उनको कोई दुःख न दे ,
सबसे बड़ी हमारी यही हैं पूजा.
दुनिया देखी थी उनकी नज़रों से,
सब कुछ कितना ख्वाब सा था,
उनके आगोश में मैं खुद को कितना सुरक्षित पाता था,
वो मेरे बालपन की जिद्द को पूरा करने के लिए,
उनका मम्मी से झगड़ना होता था,
मेरी गलती पर मुझे डांट कर उनका चेहरा उतरता था,
वो मेरे लिए बरगद का पेड़ था,
जिसके नीचे मैं बेख़ौफ़ सोता था.
सच में पिता उस खुदा की नियामत हैं ,
खुद नहीं रह सकता सबके साथ ,
इस लिए पिता को पहले भेजता हैं.
बच्चों को राह दिखाने के लिए,
हर किसी को पिता का साया देता हैं.
लगता था कितने निष्ठुर हैं हमारे पिता,
कलेजे पर पत्थर रख कर देते थे कभी जब सजा,
मन ही मन रोते थे ये हमें भी था पता,
आज जो भी हैं उसका कारण हैं पिता.
नहीं कर सकते हम क़र्ज़ उनका अदा,
बस ! उनको कोई दुःख न दे ,
सबसे बड़ी हमारी यही हैं पूजा.
Saturday, December 12, 2009
Let us be united to face the odds........
I call life a coin having only two face,
Either it is head or it will be tail,
If head is happiness , tail will definately the reverse game !
If only these are the two outcomes,
Why We gets angry to get the tail,
Let the coin rolled once again,
the head can be your winning game.
Face the truth as it comes,
you will never be in pain.
Treat everything in a positive note,
life will becomes easier and you will never loose your hope.
shake the hands with enemy during their odds,
life will bring you joy in the return note.
Make a man happy everyday ,
God will help you in your every way.
Either it is head or it will be tail,
If head is happiness , tail will definately the reverse game !
If only these are the two outcomes,
Why We gets angry to get the tail,
Let the coin rolled once again,
the head can be your winning game.
Face the truth as it comes,
you will never be in pain.
Treat everything in a positive note,
life will becomes easier and you will never loose your hope.
shake the hands with enemy during their odds,
life will bring you joy in the return note.
Make a man happy everyday ,
God will help you in your every way.
हम युवा .................
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा !
आसमां को मुट्ठी में भरने को आतुर,
हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने की जिद ,
चट्टानों से दो दो हाथ करने की ख्वाइश,
और आग से खेलने की चाहत,
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
कोई बंधन रोक नहीं सकता,
कोई बेड़िया जकड नहीं सकती,
उन्मुक्त जीने की हमारी चाहत,
कोई सीमा हमें रोक नहीं सकती.
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
नियम कानून सब किताबो की बाते हैं,
हमें तो ज़िन्दगी को जीना हैं,
बस करते हैं अपनी दिल की,
आगे जो होगा उसकी नहीं सोचना हैं.
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
आसमां को मुट्ठी में भरने को आतुर,
हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने की जिद ,
चट्टानों से दो दो हाथ करने की ख्वाइश,
और आग से खेलने की चाहत,
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
कोई बंधन रोक नहीं सकता,
कोई बेड़िया जकड नहीं सकती,
उन्मुक्त जीने की हमारी चाहत,
कोई सीमा हमें रोक नहीं सकती.
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
नियम कानून सब किताबो की बाते हैं,
हमें तो ज़िन्दगी को जीना हैं,
बस करते हैं अपनी दिल की,
आगे जो होगा उसकी नहीं सोचना हैं.
हम आज के युवा सबसे अलग, सबसे जुदा.
Wednesday, December 9, 2009
ज़िन्दगी की उलझन .............
कौन सुलझाये इस ज़िन्दगी की उलझन को, बस सब लगे पड़े हैं.
सोचा क्या था सबने कभी, बस अब सब गुजार रहें हैं.
हवा हो गए वो सपनो के महल, भीड़ से अलग दिखने की चाहत,
बस अब भीड़ का हिस्सा बन कर रह गए हैं.
ज़िन्दगी की उलझन में , हम खुद से कहीं खो गए हैं.
जब देखते हैं आइना कभी, खुद से कभी सवाल करते हैं,
चले थे किस और हम, कहाँ हम पहुच गए हैं.
ज़िन्दगी के इस पशोपेश में ,बस खिलौना बन कर रह गए हैं.
Sunday, December 6, 2009
कागज़ के टुकडो ने बदल दिया इंसान .......
कागज़ के टुकडो ने रुपये , डॉलर में ढल कर !
ज़िन्दगी का सुकून छीन लिया.
सब लग गए हैं उन टुकडो के पीछे , करने उनको जमा,
भूल गए सब नैतिक मूल्य .
भुला दिए सब रिश्ते नाते , वक़्त को ऐसे बदल दिया इन टुकडो ने,
इंसान भूल गया खुद को.
कैसी मारामर मची हैं , कैसा हैं ये हाहाकार ,
इन कागज़ के टुकडो को बना दिया हमने भगवान्.
अब प्रतिष्ठा बन गए हैं ये कागज़ के टुकडो का अम्बार,
अपनी बनायीं ही चीज़ पर अब पछता रहा इंसान.
ज़िन्दगी का सुकून छीन लिया.
सब लग गए हैं उन टुकडो के पीछे , करने उनको जमा,
भूल गए सब नैतिक मूल्य .
भुला दिए सब रिश्ते नाते , वक़्त को ऐसे बदल दिया इन टुकडो ने,
इंसान भूल गया खुद को.
कैसी मारामर मची हैं , कैसा हैं ये हाहाकार ,
इन कागज़ के टुकडो को बना दिया हमने भगवान्.
अब प्रतिष्ठा बन गए हैं ये कागज़ के टुकडो का अम्बार,
अपनी बनायीं ही चीज़ पर अब पछता रहा इंसान.
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