कागज़ के टुकडो ने रुपये , डॉलर में ढल कर !
ज़िन्दगी का सुकून छीन लिया.
सब लग गए हैं उन टुकडो के पीछे , करने उनको जमा,
भूल गए सब नैतिक मूल्य .
भुला दिए सब रिश्ते नाते , वक़्त को ऐसे बदल दिया इन टुकडो ने,
इंसान भूल गया खुद को.
कैसी मारामर मची हैं , कैसा हैं ये हाहाकार ,
इन कागज़ के टुकडो को बना दिया हमने भगवान्.
अब प्रतिष्ठा बन गए हैं ये कागज़ के टुकडो का अम्बार,
अपनी बनायीं ही चीज़ पर अब पछता रहा इंसान.
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान.....................
ReplyDeletesachmuch kitna badal gaya insaan
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