Thursday, January 21, 2010

मेरे तीन दशक ............

हिमालय की गोद में जन्मा, ऊँचे ऊँचे पहाड़ो के नीचे पला ,
ठंडी हवा के झोंके के अहसास के बीच , बेफिक्र मेरा बचपन गुजरा !
पढाई की खातिर फिर घर छोड़ा , घर से अलग हुआ ज़िन्दगी बनाने के खातिर,
फिर हमेशा से एक अलगाव सा रहा.
पढाई खत्म की एक बार फिर से लगा, फिर से बचपन जीयूँगा अपने गाँव में !
मगर भविष्य की खातिर शहर आना हुआ.
इन कंक्रीट के जंगलो से पाला पड़ा तो , समझ मे आ गया !
ज़िन्दगी के मायने जो सीखे थे कभी मम्मी की कहानियो में,
कथायो और हकीकत में फर्क समझ मे आ गया.
अब ज़िन्दगी की हकीकत ये हैं , न शहर के रहे और न गाँव के हम.
समझ नहीं आता क्यूँ भाग रहे हैं लोग यहाँ, सुकून का एक फुरसत कहाँ.
हम भी लग गए हैं भीड़ के पीछे , आगे सब धुंधला -धुंधला सा !
कहते तो हैं ज़िन्दगी बनती हैं इस शहर में, मगर ज़िन्दगी हैं कहाँ.
इसी पशोपेश में कट रही हैं ज़िन्दगी ,बस यही हैं तीन दशक की मेरी कहानी.

1 comment:

  1. Kahte hain zindagi banti hain yahan, magar zindagi hain kahan. Kya khoob likha hain boss.

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