" कुछ ही दिन हुए तो उनसे हाल चाल न पूछे हुए,
बस फिर फासला बढता गया.
हम क्यों करे पहल ,
वो क्यूँ नहीं कर सकते !
दिन यू ही फिसलते चले गए.
कुछ भी न हुआ था दरम्यान,
बस दूरियों के फासले बढते चले गए.
कुछ भी हो, अपनों से बात करते रहिये,
कभी काम की तो कभी यु ही कर लीजिये,
दूरियां बिना बात की यु न बढेगी,
दुनिया में कभी भी अपनों की कमी न खलेगी. "
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
Monday, September 20, 2010
Monday, September 13, 2010
" आज हिंदी दिवस हैं,-१४ सितम्बर "
" आज हिंदी दिवस हैं, "
सुबह जागते ही अपनी पत्नी को कहा ,
हैप्पी हिंदी दिवस.
थोड़ी देर में अपनी गलती का एहसास हो गया,
हिंदी दिवस पर भी हैप्पी हिंदी दिवस बोल गया.
हिंगलिश का ये कैसा असर हो गया हैं हम पर,
मात्र भाषा ही भूल गए हम सब.
हर आदमी चाहता हैं,
बस उसको अंग्रेजी आ जाये,
हिंदी तो लोकल लोग बोलते हैं,
हम इंग्लिश बन जाए.
इस सम्रद्ध भाषा के अब कम ही ज्ञानी रह गए हैं,
कुछ लोग अँगरेज़ और कुछ हिंगलिश हो गए हैं.
कितनी बड़ी बिडम्बना हैं,
अपनी राज्यभाषा को मनाने के लिए ,
हमें उसका दिवस मनाना पड़ रहा हैं.
मेरे जैसे कट्टर हिंदी समर्थक भी,
अब हिंगलिश बोलने में शान समझ रहे है.
हिंदी तड़प रही हैं अपने ही नौनिहालों के बर्ताव से,
धीरे धीरे दम तोड़ रही हैं हिंगलिश और इंग्लिश के प्रभाव से.
सुबह जागते ही अपनी पत्नी को कहा ,
हैप्पी हिंदी दिवस.
थोड़ी देर में अपनी गलती का एहसास हो गया,
हिंदी दिवस पर भी हैप्पी हिंदी दिवस बोल गया.
हिंगलिश का ये कैसा असर हो गया हैं हम पर,
मात्र भाषा ही भूल गए हम सब.
हर आदमी चाहता हैं,
बस उसको अंग्रेजी आ जाये,
हिंदी तो लोकल लोग बोलते हैं,
हम इंग्लिश बन जाए.
इस सम्रद्ध भाषा के अब कम ही ज्ञानी रह गए हैं,
कुछ लोग अँगरेज़ और कुछ हिंगलिश हो गए हैं.
कितनी बड़ी बिडम्बना हैं,
अपनी राज्यभाषा को मनाने के लिए ,
हमें उसका दिवस मनाना पड़ रहा हैं.
मेरे जैसे कट्टर हिंदी समर्थक भी,
अब हिंगलिश बोलने में शान समझ रहे है.
हिंदी तड़प रही हैं अपने ही नौनिहालों के बर्ताव से,
धीरे धीरे दम तोड़ रही हैं हिंगलिश और इंग्लिश के प्रभाव से.
Saturday, September 11, 2010
रास्ते से एक दिन खुदा जा रहे थे......
रास्ते से एक दिन खुदा जा रहे थे,
मुझे देख कर आँख चुरा रहे थे,
मैं भी कम न था,
पकड़ ही लिया अगले नुक्कड़ पर,
बैठा दिया एक चाय के खोमचे पर,
कुछ इधर उधर की बाते की,
फिर मैं लाइन पर आ ही गया,
पूछ ही डाला सवाल खुदा से,
जिससे एक बार तो खुदा भी सकपका गया,
मैंने पूछा , " अपनी ही बनायीं दुनिया में,
यु छुपे- चुप्प घूम रहे हो "
चाय का घूँट शायद गले में ही अटक गया,
दर्द उनकी आँखे में आ गया,
" सोच कर क्या बनायीं थी मैंने दुनिया,
ये हाल क्या हो गया.
दुनिया बनाने से थोडा थक कर सो गया था,
लेकिन अंदाज़ा न था, इतनी देर में सब कुछ बदल जायेगा,
रचनाकार को खुद ही आसरा दूंदना भारी हो जायेगा."
मैंने सोचा अब अपना दर्द बता कर क्यूँ परेशान खुदा को करू,
खुद ही संभल जाऊंगा, खुदा को चाय के चुस्कियो के बीच ही छोड़ दिया.
मुझे देख कर आँख चुरा रहे थे,
मैं भी कम न था,
पकड़ ही लिया अगले नुक्कड़ पर,
बैठा दिया एक चाय के खोमचे पर,
कुछ इधर उधर की बाते की,
फिर मैं लाइन पर आ ही गया,
पूछ ही डाला सवाल खुदा से,
जिससे एक बार तो खुदा भी सकपका गया,
मैंने पूछा , " अपनी ही बनायीं दुनिया में,
यु छुपे- चुप्प घूम रहे हो "
चाय का घूँट शायद गले में ही अटक गया,
दर्द उनकी आँखे में आ गया,
" सोच कर क्या बनायीं थी मैंने दुनिया,
ये हाल क्या हो गया.
दुनिया बनाने से थोडा थक कर सो गया था,
लेकिन अंदाज़ा न था, इतनी देर में सब कुछ बदल जायेगा,
रचनाकार को खुद ही आसरा दूंदना भारी हो जायेगा."
मैंने सोचा अब अपना दर्द बता कर क्यूँ परेशान खुदा को करू,
खुद ही संभल जाऊंगा, खुदा को चाय के चुस्कियो के बीच ही छोड़ दिया.
चल खुदा, मेरे साथ चल...
" चल खुदा, मेरे साथ चल, तुझे तेरी ही दुनिया दिखाता हूँ.
तुने जो भी सोचा था, हकीकत में दिखाता हूँ.
तुने तो सबको एक सा बनाया था, मगर फर्क कितना , समझाता हूँ.
कोई तो भूखा मरे , और कही खजाने भरे पड़े.
तुने तो सबको प्यार करना सीखाया, मगर यहाँ तो भाई भाई से लड़े.
तुने कितने जतन से बनाई दुनिया, मगर तेरे ही बन्दे इसकी तस्वीर बदले.
तुने तो एक धर्म बनाया मानवता का, यहाँ तो कितने पंथ बने.
अब तो तुझे भी कई नाम दे दिए, एक तू निरंकार अब तेरे हजारो नाम हुए.
तुझे बंद कर इट के दरवाजो में, तेरे नाम से कितने घर जले.
चल खुदा ! मेरे साथ चल, तुझे तेरी ही दुनिया दिखाता हूँ.
जो तेरा नाम रोज़ ले, मुशीबत में वो ही पड़े,
जो करे आज तमाशा , हाथ दुनिया उसी को जोड़े.
सच में तुने भी रचना करने के बाद इस दुनिया की सुध नहीं ली.
सब कुछ बना दिया है अच्छा, ये सोच आँखे मूद ली.
तेरे ही बन्दों ने देख तेरी दुनिया की हालत बदल दी. "
तुने जो भी सोचा था, हकीकत में दिखाता हूँ.
तुने तो सबको एक सा बनाया था, मगर फर्क कितना , समझाता हूँ.
कोई तो भूखा मरे , और कही खजाने भरे पड़े.
तुने तो सबको प्यार करना सीखाया, मगर यहाँ तो भाई भाई से लड़े.
तुने कितने जतन से बनाई दुनिया, मगर तेरे ही बन्दे इसकी तस्वीर बदले.
तुने तो एक धर्म बनाया मानवता का, यहाँ तो कितने पंथ बने.
अब तो तुझे भी कई नाम दे दिए, एक तू निरंकार अब तेरे हजारो नाम हुए.
तुझे बंद कर इट के दरवाजो में, तेरे नाम से कितने घर जले.
चल खुदा ! मेरे साथ चल, तुझे तेरी ही दुनिया दिखाता हूँ.
जो तेरा नाम रोज़ ले, मुशीबत में वो ही पड़े,
जो करे आज तमाशा , हाथ दुनिया उसी को जोड़े.
सच में तुने भी रचना करने के बाद इस दुनिया की सुध नहीं ली.
सब कुछ बना दिया है अच्छा, ये सोच आँखे मूद ली.
तेरे ही बन्दों ने देख तेरी दुनिया की हालत बदल दी. "
Thursday, September 9, 2010
कागजो की आपबीती ....( दूसरा भाग)
सुनकर करेंसी नोट के कागज़ की दास्तान,
सारे हो गए हैरान,
जिसे सारे अब तक बड़ा खुशकिस्मत समझ रहे थे,
उसी पर अब सारे तरस खा रहे थे,
अश्रुपूर्ण नयनो को लेकर जब वो नीचे उत्तरी,
चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठी,
जो अब तक उसे ललचाई नज़रो से देख रहे थे,
अब वो बगले झांक रहे थे.
हर चीज़ जो चमकती है, सोना नहीं होती ,
एक दुसरे के कान में कह रहे थे.
वो भी अपनी बिरादरी की ही हैं,
उसके दुःख में सारे शरीक हो रहे थे.
किसी की किस्मत और हैसियत से जलो मत,
वो भी आग में तप कर उस जगह काबिज़ हुआ हैं.
सब अपनी अपनी जगह राजा हैं,
सबका अपना अलग अलग रास्ता,
जिसका जो काम उसी को भाता हैं,
हर ख़ुशी के पीछे दर्द का बड़ा सैलाब हैं.
सारे हो गए हैरान,
जिसे सारे अब तक बड़ा खुशकिस्मत समझ रहे थे,
उसी पर अब सारे तरस खा रहे थे,
अश्रुपूर्ण नयनो को लेकर जब वो नीचे उत्तरी,
चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठी,
जो अब तक उसे ललचाई नज़रो से देख रहे थे,
अब वो बगले झांक रहे थे.
हर चीज़ जो चमकती है, सोना नहीं होती ,
एक दुसरे के कान में कह रहे थे.
वो भी अपनी बिरादरी की ही हैं,
उसके दुःख में सारे शरीक हो रहे थे.
किसी की किस्मत और हैसियत से जलो मत,
वो भी आग में तप कर उस जगह काबिज़ हुआ हैं.
सब अपनी अपनी जगह राजा हैं,
सबका अपना अलग अलग रास्ता,
जिसका जो काम उसी को भाता हैं,
हर ख़ुशी के पीछे दर्द का बड़ा सैलाब हैं.
Friday, September 3, 2010
कागजों की आपबीती ..........
कागजों के एक सेमीनार में,
सब करेंसी नोट की किस्मत से जल रहे थे,
सब अपनी अपनी बारी से अपनी किस्मत का रोना रो रहे थे,
अखबार वाला कागज़ अपनी दुविधा बता रहा था,
किताबो का कागज़ अपने पर पड़ी धूल को हटा रहा था.
लेकिन सब करेंसी नोट के कागज़ की बोलने की बारी का इंतज़ार कर रहे थे,
आखीर में करेंसी नोट का कागज़ सजा धजा मंच पर पहुचने को तैयार हुआ ,
मंच तक पहुचने के छोटे से रास्ते में ही हजारो ने उसको ललचाई नजरो से घूरा.
छीना झपटी से बचता बचाता वो मंच तक पंहुचा.
तालियों की गूँज से उसका बड़ा स्वागत हुआ.
वो सहमा सहमा माइक तक जा ही पंहुचा,
" मुझे यु मत देखो ललचाई नज़रों से,
अब कुछ भी बचा नहीं हैं मुझमे,
कितने लोगो के पास रह कर गुजरी हूँ में,
गिनती भी कम पड़ गयी हैं गिनने में,
तुम सब मेरी किस्मत पर जल रहे हो,
मगर हकीकत बिलकुल उलटी हैं,
मैं तुम्हे खुशकिस्मत समझती हूँ,
तुम किसी एक के पास रहकर सजती तो हो,
मैं तो कभी इस हाथ में, कभी उस हाथ में,
कभी किसी की तिजोरी में, कभी किसी के जेब में.
एक जगह कभी टिक नहीं सकती,
किसी को अपना कह नहीं सकती,
मुझ पर घर तोड़ने के आरोप लगते हैं,
भाई भाई आपस में मेरे लिए लड़ते हैं.
मुझे ही दुनिया वाले सबसे बड़ा समझते हैं.
सारे दुनिया के बुरे काम मुझसे ही होते हैं.
लोगो को मुझे पाने के लिए दिन रात एक करते देखती हूँ,
बच्चो को उनके अपनों से दूर होते सोचती हूँ,
में न चाहते हुए भी सबमे शरीक हूँ,
मुझसे पूछो तो में सबसे गरीब हूँ. "
सब स्तब्ध रह गए नोट की आपबीती सुन कर,
सन्नाटा पसर गया सारे हॉल पर.
(फिर क्या हुआ, अगले भाग में ................पढते रहिये )
सब करेंसी नोट की किस्मत से जल रहे थे,
सब अपनी अपनी बारी से अपनी किस्मत का रोना रो रहे थे,
अखबार वाला कागज़ अपनी दुविधा बता रहा था,
किताबो का कागज़ अपने पर पड़ी धूल को हटा रहा था.
लेकिन सब करेंसी नोट के कागज़ की बोलने की बारी का इंतज़ार कर रहे थे,
आखीर में करेंसी नोट का कागज़ सजा धजा मंच पर पहुचने को तैयार हुआ ,
मंच तक पहुचने के छोटे से रास्ते में ही हजारो ने उसको ललचाई नजरो से घूरा.
छीना झपटी से बचता बचाता वो मंच तक पंहुचा.
तालियों की गूँज से उसका बड़ा स्वागत हुआ.
वो सहमा सहमा माइक तक जा ही पंहुचा,
" मुझे यु मत देखो ललचाई नज़रों से,
अब कुछ भी बचा नहीं हैं मुझमे,
कितने लोगो के पास रह कर गुजरी हूँ में,
गिनती भी कम पड़ गयी हैं गिनने में,
तुम सब मेरी किस्मत पर जल रहे हो,
मगर हकीकत बिलकुल उलटी हैं,
मैं तुम्हे खुशकिस्मत समझती हूँ,
तुम किसी एक के पास रहकर सजती तो हो,
मैं तो कभी इस हाथ में, कभी उस हाथ में,
कभी किसी की तिजोरी में, कभी किसी के जेब में.
एक जगह कभी टिक नहीं सकती,
किसी को अपना कह नहीं सकती,
मुझ पर घर तोड़ने के आरोप लगते हैं,
भाई भाई आपस में मेरे लिए लड़ते हैं.
मुझे ही दुनिया वाले सबसे बड़ा समझते हैं.
सारे दुनिया के बुरे काम मुझसे ही होते हैं.
लोगो को मुझे पाने के लिए दिन रात एक करते देखती हूँ,
बच्चो को उनके अपनों से दूर होते सोचती हूँ,
में न चाहते हुए भी सबमे शरीक हूँ,
मुझसे पूछो तो में सबसे गरीब हूँ. "
सब स्तब्ध रह गए नोट की आपबीती सुन कर,
सन्नाटा पसर गया सारे हॉल पर.
(फिर क्या हुआ, अगले भाग में ................पढते रहिये )
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