रास्ते से एक दिन खुदा जा रहे थे,
मुझे देख कर आँख चुरा रहे थे,
मैं भी कम न था,
पकड़ ही लिया अगले नुक्कड़ पर,
बैठा दिया एक चाय के खोमचे पर,
कुछ इधर उधर की बाते की,
फिर मैं लाइन पर आ ही गया,
पूछ ही डाला सवाल खुदा से,
जिससे एक बार तो खुदा भी सकपका गया,
मैंने पूछा , " अपनी ही बनायीं दुनिया में,
यु छुपे- चुप्प घूम रहे हो "
चाय का घूँट शायद गले में ही अटक गया,
दर्द उनकी आँखे में आ गया,
" सोच कर क्या बनायीं थी मैंने दुनिया,
ये हाल क्या हो गया.
दुनिया बनाने से थोडा थक कर सो गया था,
लेकिन अंदाज़ा न था, इतनी देर में सब कुछ बदल जायेगा,
रचनाकार को खुद ही आसरा दूंदना भारी हो जायेगा."
मैंने सोचा अब अपना दर्द बता कर क्यूँ परेशान खुदा को करू,
खुद ही संभल जाऊंगा, खुदा को चाय के चुस्कियो के बीच ही छोड़ दिया.
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