" चल खुदा, मेरे साथ चल, तुझे तेरी ही दुनिया दिखाता हूँ.
तुने जो भी सोचा था, हकीकत में दिखाता हूँ.
तुने तो सबको एक सा बनाया था, मगर फर्क कितना , समझाता हूँ.
कोई तो भूखा मरे , और कही खजाने भरे पड़े.
तुने तो सबको प्यार करना सीखाया, मगर यहाँ तो भाई भाई से लड़े.
तुने कितने जतन से बनाई दुनिया, मगर तेरे ही बन्दे इसकी तस्वीर बदले.
तुने तो एक धर्म बनाया मानवता का, यहाँ तो कितने पंथ बने.
अब तो तुझे भी कई नाम दे दिए, एक तू निरंकार अब तेरे हजारो नाम हुए.
तुझे बंद कर इट के दरवाजो में, तेरे नाम से कितने घर जले.
चल खुदा ! मेरे साथ चल, तुझे तेरी ही दुनिया दिखाता हूँ.
जो तेरा नाम रोज़ ले, मुशीबत में वो ही पड़े,
जो करे आज तमाशा , हाथ दुनिया उसी को जोड़े.
सच में तुने भी रचना करने के बाद इस दुनिया की सुध नहीं ली.
सब कुछ बना दिया है अच्छा, ये सोच आँखे मूद ली.
तेरे ही बन्दों ने देख तेरी दुनिया की हालत बदल दी. "
सुन्दर ढंग से विचारणीय अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteराजेंद्र मीणा, 'अथाह...'से
dhnyvaad
sahihai... khuda ko neeche laa unhe unkee banayi rangeen duniya ke badle mizaza dikhane zaroorat hai... khoob kaha...
ReplyDeleteदर्द उभर कर आ गया है……………काश कोई उस सोये हुये खुदा को जगा सके।
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