जब छोटे थे तो सोचते थे, कब स्कूल जायेंगे,
और हम बस्ता टांग कर शान दिखायेंगे.
स्कूल पहुचे तो लगा ये कहाँ आ गए ?
फिर सोचा कब कोलेज जायंगे और ?
स्कूल के ये रोज़ रोज़ के झंझटो से कब आज़ादी पाएंगे?
स्कूल खत्म हुआ कोलेज पहुचे थोड़ी दिनों में वहा से भी उकता गए.
नौकरी करते लोगो को देख अपने भी अरमान हरे हो गए.
नौकरी लगी, थोड़े दिन अच्छा लगे,
फिर डंडे पड़ने शुरू हुए.
कुछ साल नौकरी करने के बाद एहसास हुआ ,
उफ़ ! ये किस जंगल में फंस गए.
अब कभी सोचते हैं कब नौकरी से छुटकारा मिले,
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