चारो तरफ देख हाहाकार ,
कितना हो गया मनुष्य लाचार,
कल तो जो डींगे भरता था,
प्रकति ने एक ही झटके में,
चूर किया उसका अहंकार.
अब देख रहा वो अंजाम,
छेड़ा छेडी जो उसने की थी प्रकति के साथ,
अब उसका परिणाम देख कर,
रूह भी काँप गयी आज.
दूर से अब देख कर विनाश,
सबको आयी उस खुदा की याद.
संतुलन बिगाड़ा तो अब सजा भी तो भुगतने को,
तैयार रह आज के इंसान.
( यह कविता जापान में आये भूकंप के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं)
कितना हो गया मनुष्य लाचार,
कल तो जो डींगे भरता था,
प्रकति ने एक ही झटके में,
चूर किया उसका अहंकार.
अब देख रहा वो अंजाम,
छेड़ा छेडी जो उसने की थी प्रकति के साथ,
अब उसका परिणाम देख कर,
रूह भी काँप गयी आज.
दूर से अब देख कर विनाश,
सबको आयी उस खुदा की याद.
संतुलन बिगाड़ा तो अब सजा भी तो भुगतने को,
तैयार रह आज के इंसान.
( यह कविता जापान में आये भूकंप के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं)
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