Monday, January 11, 2016

२०१६ की पहली कविता -आम आदमी का दर्द



एक जगह मजमा लगा था ,
एक आम आदमी ऑफिस से घर लौट रहा था ,
एक कंधे में बैग का बोझ , दूसरे में टिफ़िन लटक रहा था ,
कौतूहलवश वो भी पहुँच गया ,
तभी एक पत्रकार ने माइक उसके मुंह में ठूस सा दिया ,
" आपको क्या कहना हैं देश के हालातो के बारे में ?
एक तरफ पाकिस्तान से आतंकवादी रहे हैं ,
देश में   असहिष्णुता फ़ैल रही हैं ,
राजनेता एक दूसरे पर बयानबाजी कर रहे हैं ,
महिलाओ की सुरक्षा खतरे में हैं ,
प्रदुषण ने सांस लेना दूभर कर दिया हैं ,
ऐसे में बताये - आम आदमी क्या सोचता हैं ?
पूरा देश एक आम आदमी को सुनना चाहता हैं। "

वो हकबका सा गया , एक हाथ से टिफीन जैसे छूट सा गया ,
" मैडम, इधर गुप्ता जी की किराने की दूकान थी , जहाँ दाले दो रुपये सस्ती मिलती थी !
वहीं लेने इधर उतरा हूँ , ये भीड़ हटाओगी तो ही ले पाउँगा ,
वर्ना आज भी घर पर डांट खाऊँगा।
रही बात असहिष्णुता की , मैंने और मेरे दोस्त रहमान ने ऑफिस में एक साथ रोटी खायी हैं।
आतंकवादी सिर उठा रहे हैं क्यूंकि हर तरफ राजनेता अपनी अपनी रोटी सेंक रहे हैं। 
रही बात प्रदूषण की , ये आप जैसे लोग ही फैला रहे हैं।“

वह चुपचाप गुप्ता जी की दूकान ढूंढता वहाँ से निकल गया ,
बहस के लिए बुद्धिजीवियों का एक वर्ग इकठ्ठा हो गया !

आरोप प्रत्यारोपों का दौर फिर लम्बा चला होगा ,
आम आदमी खा पीकर कल की फिक्र में सो गया होगा. 

( Picture taken from Internet - RK Laxman cartoon -Common man)

2 comments:

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  2. Bahut khubsurati se aaj ke aam aadmi ki tasveer utari hai. Aapko salam.

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