जीवन कौन चला रहा है ?
क्या हम ?
कतई नहीं ,
हमें तो पता भी नहीं ,
अगले पल क्या होने वाला है ?
फिर किसके हाथ में डोर है ?
प्रकृति की ,
नहीं ,
इसको भी कोई और नियंत्रित कर रहा है ,
फिर किसके हाथों की कठपुतली है हम ?
कौन हमें नचा रहा है ?
किसकी मर्ज़ी से साँसे चल रही है ?
किसकी ईच्छा से ये संसार चल रहा है ?
सबके अपने -अपने नाम है ,
सबका अपना -अपना विश्वास है ,
कोई तो है कहीं न कही ,
जो अदृश्य होकर भी कण -कण में बसा हैं।
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