Friday, June 13, 2025

जीवन

 

जीवन कौन चला रहा है ? 

क्या हम ?

कतई नहीं , 

हमें तो पता भी नहीं , 

अगले पल क्या होने वाला है ? 


फिर किसके हाथ में डोर है ? 

प्रकृति की , 

नहीं , 

इसको भी कोई और नियंत्रित कर रहा है , 


फिर किसके हाथों की कठपुतली है हम ? 

कौन हमें नचा रहा है ? 

किसकी मर्ज़ी से साँसे चल रही है ?

किसकी ईच्छा से ये संसार चल रहा है ? 


सबके अपने -अपने नाम है , 

सबका अपना -अपना विश्वास है , 

कोई तो है कहीं न कही , 

जो अदृश्य होकर भी कण -कण में बसा हैं।   

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