Monday, July 28, 2025

सावन

उमड़ घुमड़ मेघों का आच्छादन, 

नीले अम्बर पर जैसे श्वेतावरण , 

अठखेलियाँ खेलते संग समीरण , 

कोहरे से धुऑं -धुआँ वातावरण।  


कोई श्वेत वर्ण, कोई श्यामवर्ण , 

करते जोर -शोर से गर्जन ,

तरुवर सब निहारे नभ को , 

बूँदो से फिर दृश्य धरा विहँगम।  


रोम - रोम पुलकित धरा का , 

हरा -भरा चहुँओर आवरण , 

पपीहे -मयूरा सब नाचे पँख फैला , 

झूम -झूम बरसे जब सावन।  


पुलकित रज का कण -कण  , 

बूँदो की छुअन अप्रतिम , 

खिले हुए से तन -मन सारे , 

बरसे जब भी पीयूष सावन।  

Thursday, July 24, 2025

पहाड़ों का चौमास


बारिश होती है खूब , 

पहाड़ों में ऊँचे ऊँचे डानो में , 

पानी सब इकठ्ठा होता है , 

गधेरों में , और गधेरे , 

सब मिल जाते है नदी में , 

एक मरियल सी सर्पीली नदी , 

जिसे कल तक यूँ ही फाँक मार कर , 

पार कर जाते थे बच्चे भी , 

अचानक से चौमास में , 

वार -पार फ़ैल जाती है , 

और पानी का सौट , 

इतना तेज , 

बड़े बड़े गंगलोड़ , 

सब बहा ले जाती है , 

इन गंगलोड़ो को , 

लुढ़का लुढ़का कर पीस देती है , 

और किनारे लगा देती है , 

बजरी बनाकर , 

अपना छीना -छिनाया क्षेत्र , 

सब वापस लेकर अतिक्रमण से , 

फिर एकदम शांत हो जाती है , 

चौमास के बाद नदी , 

फिर से पतली , सूखी धार , 

बन जाती है , 

अगले चौमास तक।   

Monday, July 14, 2025

भीष्म प्रतिज्ञा

 

देख पिता का संताप , देवव्रत को बड़ा विषाद हुआ ,

क्या उनके हस्तिनापुर आने से ही महाराज का ये हाल हुआ ,

तरसा जिनके स्नेह के लिये पूरे पच्चीस बरस ,

मिलन पर ये कैसा तुषारापात हुआ। 

 

पुत्र  तो पिता को सुःख देने के लिये होता है ,

एक जनक के लिये पुत्र  वर्तमान , भविष्य होता है ,

पूत सपूत वंश का अभिमान होता है  ,

पूत कपूत वंश का कलंक होता है । 

 

परशुराम  शिष्य निकले ढूँढने समाधान ,

संकट आ गया उनके सामने महान ,

जो हो स्वंय गंगा पुत्र , वो क्यों हो विचलित,

बदलने को आतुर सब विधान। 

 

ले जल हाथ में,साक्षी बने अरुण –वरुण-व्योम  ,

ठहर गया सारा चर-अचर जगत तमाम ,

करने चला शांतनु पुत्र, आज प्रण महान ,

पिता के सुख के लिए भविष्य का बलिदान। 

 

प्रण करता हूँ - आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा ,

हस्तिनापुर राजसिंहासन का ताउम्र सेवक रहूँगा ,

सूर्य बदल दे रास्ता अपना , चन्द्रमा कलाएँ भूल जाये ,

अटल रहेगा प्रण देवव्रत का , जब तक प्राण तन से न जाये। 

 

जिसके सिर मुकुट सजना था हस्तिनापुर का ,

जिसकी भुजाओं में अकूत बल , मस्तक पर तेज था ,

अस्त्र -शस्त्र , वेदों में निपुण , नीतियों का मर्मज्ञ था ,

किस्मत की लेखी पर कहाँ उसका वश चलना था। 

 

हे ! विधाता - ये क्या कर दिया तूने , शान्तनु को पश्चताप हुआ ,

हस्तिनापुर के युवराज ने सब कुछ एक पल में त्याग  दिया ,

जोड़कर अपने सब पुण्य कर्मों को , एक आशीष दिया ,

ईच्छा मृत्यु का वरदान , और नाम " भीष्म " दे दिया। 

 

सत्यवती का अपना रुख , शांतनु समय का इक मोहरा था,

निर्णय ये इतना सहज न था, कौन जानता था आगे क्या होना था ,

परिस्थितयों के वश लिया गया  निर्णय ,काल की एक चाल थी ,

किसे पता था - महाभारत की नींव उसी दिन पड़ चुकी थी। 

Friday, July 11, 2025

महत्व

 

रात ने कभी सुबह से शिकायत नहीं की ,

सुबह ने रात को कभी नहीं चिढ़ाया ,

दोनों को पता है महत्व इक दूजे का ,

इक दूसरे के बिना अस्तित्व कहाँ उनका। 

 

उतार -चढ़ाव भी तो ऐसे ही जीवन चक्र में ,

एहसासों के अनुभव से गुजरने का सफर सारा ,

मुक्कमल सफ़र -ऐ -ज़िन्दगी तो वही जहाँ में ,

कर्मफल जो मिला , जिसने दिल से स्वीकारा। 

Wednesday, July 2, 2025

जानता नहीं , मैं कौन हूँ ?

 

सड़क पर टक्कर मार ,

एक लम्बी गाड़ी वाला ,

अकड़ झाड़ रहा था ,

साईकिल वाले को ,

घुड़की दे रहा था ,

तेज आवाज़ में चिल्ला रहा था ,

"जानता नहीं , मैं कौन हूँ ?"

साईकिल वाला अपने पैर के ,

रिसते हुए खून को पोछते हुए बोला ,

दूसरे हाथ से साईकिल को संभाले हुए , 

" मैं तो नहीं जानता ,

मगर क्या तुम जानते हो ,

मैं कौन हूँ ?

गलती तुम्हारी है ,

जाओ , जाओ साहब  ,

बख्श देता हूँ आज ,

आपसे बड़ा तो मैं हूँ। "

प्रकोप

 

नदी, नाले, गधेरे, पहाड़, जंगल

आपसे कुछ नहीं कहेंगे ,

मगर जब आप उनका हक़ छीनोगे ,

इक दिन एक झटके में सब ले लेंगे। 


सहने की भी इक सीमा होती है ,

वो उससे ऊपर भी सह जाते है ,

असहनीय अतिक्रमण हो जाता है जब ,

वो भी अपना गुस्सा जाहिर करते है। 


 कुदरत जानती है संतुलन बनाना ,

वो उसका नैसर्गिक स्वभाव है ,

जरूरतें तो पूरी कर सकते है ये सब ,

लालच का तो इनके पास भी नहीं कोई समाधान।