Monday, July 14, 2025

भीष्म प्रतिज्ञा

 

देख पिता का संताप , देवव्रत को बड़ा विषाद हुआ ,

क्या उनके हस्तिनापुर आने से ही महाराज का ये हाल हुआ ,

तरसा जिनके स्नेह के लिये पूरे पच्चीस बरस ,

मिलन पर ये कैसा तुषारापात हुआ। 

 

पुत्र  तो पिता को सुःख देने के लिये होता है ,

एक जनक के लिये पुत्र  वर्तमान , भविष्य होता है ,

पूत सपूत वंश का अभिमान होता है  ,

पूत कपूत वंश का कलंक होता है । 

 

परशुराम  शिष्य निकले ढूँढने समाधान ,

संकट आ गया उनके सामने महान ,

जो हो स्वंय गंगा पुत्र , वो क्यों हो विचलित,

बदलने को आतुर सब विधान। 

 

ले जल हाथ में,साक्षी बने अरुण –वरुण-व्योम  ,

ठहर गया सारा चर-अचर जगत तमाम ,

करने चला शांतनु पुत्र, आज प्रण महान ,

पिता के सुख के लिए भविष्य का बलिदान। 

 

प्रण करता हूँ - आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा ,

हस्तिनापुर राजसिंहासन का ताउम्र सेवक रहूँगा ,

सूर्य बदल दे रास्ता अपना , चन्द्रमा कलाएँ भूल जाये ,

अटल रहेगा प्रण देवव्रत का , जब तक प्राण तन से न जाये। 

 

जिसके सिर मुकुट सजना था हस्तिनापुर का ,

जिसकी भुजाओं में अकूत बल , मस्तक पर तेज था ,

अस्त्र -शस्त्र , वेदों में निपुण , नीतियों का मर्मज्ञ था ,

किस्मत की लेखी पर कहाँ उसका वश चलना था। 

 

हे ! विधाता - ये क्या कर दिया तूने , शान्तनु को पश्चताप हुआ ,

हस्तिनापुर के युवराज ने सब कुछ एक पल में त्याग  दिया ,

जोड़कर अपने सब पुण्य कर्मों को , एक आशीष दिया ,

ईच्छा मृत्यु का वरदान , और नाम " भीष्म " दे दिया। 

 

सत्यवती का अपना रुख , शांतनु समय का इक मोहरा था,

निर्णय ये इतना सहज न था, कौन जानता था आगे क्या होना था ,

परिस्थितयों के वश लिया गया  निर्णय ,काल की एक चाल थी ,

किसे पता था - महाभारत की नींव उसी दिन पड़ चुकी थी। 

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