Wednesday, July 2, 2025

प्रकोप

 

नदी, नाले, गधेरे, पहाड़, जंगल

आपसे कुछ नहीं कहेंगे ,

मगर जब आप उनका हक़ छीनोगे ,

इक दिन एक झटके में सब ले लेंगे। 


सहने की भी इक सीमा होती है ,

वो उससे ऊपर भी सह जाते है ,

असहनीय अतिक्रमण हो जाता है जब ,

वो भी अपना गुस्सा जाहिर करते है। 


 कुदरत जानती है संतुलन बनाना ,

वो उसका नैसर्गिक स्वभाव है ,

जरूरतें तो पूरी कर सकते है ये सब ,

लालच का तो इनके पास भी नहीं कोई समाधान।  

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