Tuesday, September 30, 2025

समर्पण

करके देखो एक बार ,

अर्पित खुद को राम के नाम ,

छोड़ दे  सब  चिंताएँ ,

प्रभु रखेंगे उनका ध्यान ,

चित्त लगा तू कर्मो में ,

बनेंगे सारे तेरे काम।

 

विश्वास रख उन पर ,

वो ही पार लगायेंगे ,

कर्मों के तेरे वो ही ,

फ़ूल समय पर खिलायेंगे ,

हिसाब किताब के पक्के ,

सूद समेत लौटायेंगे।


Thursday, September 25, 2025

प्रकृति का गुरुमंत्र


मसला सिर्फ इक हल न हुआ ,

जितनी मेहनत की , उतना फल न मिला ,

देखे बियाबान में बहुतेरे ऐसे ,

किस्मत से जिनको भर -भरके मिला। 

 

सोचा षड़यंत्र है ये कोई प्रकृति का ,

थोड़ा दिमाग लगाया तो समझ आया ,

जिन्होंने मेहनत की सही दिशा में ,

समय और किस्मत का उनको साथ मिला।

 

मेहनत तो सभी करते है अपने स्तर पर ,

फर्क फिर कहाँ पैदा होता है , ये बता ,

सही समय पर सही दिशा में जो ऊर्जा लगाये ,

प्रकृति के उसूलों से मिलती है उसी को सफ़लता। 


Saturday, September 20, 2025

सफलता की कुँजी

 

इक जूनून सा जगाना पड़ता है ,

ध्यान बगुले सा लगाना पड़ता है ,

आसानी से नहीं मिलती मंजिल ,

बाकियों से अधिक श्रम करना पड़ता है। 

 

विश्वास खुद पर रखना होता है ,

निराशाओं को पार करना होता है ,

हुनर तो बहुतों के पास हैं "आनन्द " ,

एक कदम औरों से आगे चलना होता है। 

 

शंका स्वंय पर कमजोरी है ,

इंसान के बूते सब कुछ हासिल है ,

करना पड़ता है त्याग थोड़ा ,

मखमल में कहाँ कमल खिलता हैं। 

 

ध्यान और मेहनत सफलता की कुँजी है ,

परिस्थितियाँ तो बस इक बहाना है ,

लक्ष्य सामने , परिश्रम एकसार ,

गर्जन में ही कदम्ब के फूल खिलते है। 

Thursday, September 18, 2025

छलावा

शनैः शनैः हम इक ,

छलावे की दुनिया ,

असली समझ , 

गिरफ्त में आ रहे है , 

इस दुनिया का कोई , 

सिर पैर नहीं है , 

सब आभाषी , 

सब छदम , 

इसी दुनिया को अब , 

नई दुनिया समझ रहे है।  


डर इस बात का है सिर्फ , 

छदम या आभाषी दुनिया की , 

उम्र लंबी नहीं होती है , 

फिर जब टूटेगा भ्रम , 

तब तक शायद बहुत देर , 

हो चुकी होगी , 

और शायद इक पीढ़ी , 

भ्रम में ही खप चुकी होगी, 

नई पीढ़ी को फिर , 

सिफ़र से शुरुवात करनी होगी।  

Friday, September 12, 2025

ज़ेन -जी

 

अलग़ नहीं है ये हमसे ,

मगर तेवर थोड़ा जुदा है ,

कसूर इनका नहीं है ,

वक्त ही अब इनका है।

 

जोशोजुनूं से लबरेज ,

खून नया नया है ,

आंधी , तूफ़ान से नहीं डरने वाले ,

हवाओं का रुख मोड़ने वाले है।

 

तकनीक हाथों की कठपुतली ,

पहुँच में सारा जहान है ,

माकूल हवाओं का इन्तजार क्यों ,

आज ही समाधान है।

 

ये कल का आधार है ,

आज की कीमत जानते है ,

लगे भले ही थोड़े विद्रोही से ,

ये जंजीरें तोड़ना जानते हैं।

 

व्यावहारिकता इनके नस नस में ,

किताबी बातें सिर्फ ढकोसला है ,

वक्त बदला है , दौर बदला है ,

अपना हक़ सब जानते है।

 

बहुत आग है ,

तूफ़ान है इनके अंदर ,

मिल गया सही रास्ता ,

बदल सकते है ये सारा मंजर।

 

चिंता बस इक बात की है ,

किसी की कठपुतली मत बनना ,

सक्षम हो तुम सब मिलकर ही ,

आवाज हक़ में बुलंद रखना।

Wednesday, September 10, 2025

उद्देश्य

 न जाने कहाँ से लुढ़कते लुढ़कते ,

किनारे लगा था वो बड़ा सा पत्थर ,

किसी रोज़ जब नदी में बाढ़ आयी थी ,

बहुत कोशिशों से कोई न हटा पाया था ,

उस पत्थर ने एक तरफ नदी की धार रोक दी थी ,

सब की उलाहना सहते सहते वो भी तंग था ,

"मेरी फूटी किस्मत " रोज़ रोता था ,

फिर आदत हो गयी उसे किनारे पर रहते रहते ,

नदी ने जमा कर दी थी गाद चारों ओर उसके ,

बच्चे आते थे , चढ़कर उसपर नदी में छलाँग मारते थे ,

वो रोज़ नदी को बहते देखता और ,

पुराने दिनों की यादों में खो जाता ,

फिर एक चौमास घनघोर बारिश हुई ,

नदी ने विकराल रूप धारण किया ,

जो मिला रास्ते में , सब निगल लिया ,

जब टकरायी उस शिला से,

बहुत वेग लगाया , खूब जोर लगाया ,

एक बार पत्थर का भी जी ललचाया ,

वो तो बहने के इन्तजार में ही पड़ा था,

मगर अचानक से उसे ख्याल आया ,

उसे सहारा मान नदी के उस किनारे ,

लहलहा रही थी फसलें ,

कुछ मकान बन चुके थे ,

सोचकर उसने अपना इरादा बदल लिया ,

नदी जितना वेग लगाती उसे उखाड़ने को ,

वो उतना ही धँसता गढ़ता चला जाता,

नदी ने समझाया , बुझाया उसको ,

साथ बहने की हिदायत दी ,

मगर टस से मस न हुआ वो हठी ,

अड़ा रहा और सारा पानी उतर गया ,

बच्चे -बड़े सब कहने लगे ,

इस "शिला" ने सबको बचा लिया,

शिला को अपना ठहरने का उद्देश्य समझ आ गया ,

दुत्कारें सब दुआओं में बदल गयी ,

शिला की तबसे पूजा होने लगी ,

कुछ भी बिना उद्देश्य के नहीं है जगत में ,

सबका इक प्रारब्ध है ,

वक्त का बस इन्तजार रहता है ,

अकारण  इस जगत में कुछ भी नहीं।     

 

Monday, September 8, 2025

सुनो ज़िन्दगी

सुनो ज़िन्दगी , 

एक बात करनी है , 

इक मुद्दा सुलझाना है , 

मुद्दा ये है , 

जिस गति से तुम भाग रही हो , 

वह गति मुझे मंजूर नहीं है , 

तुम्हारा क्या है ? 

समय के साथ क्यों दौड़ लगा रही हो , 

थोड़ा आराम आराम से चलो , 

मेरी ख्वाइशें हर मील के पत्थर पर , 

अभी भी अधूरी है ,

और याद रखना , 

तुम भी फिर अधूरी ही रह जाओगी, 

कम से कम एक ज़िन्दगी में।    

Friday, September 5, 2025

कल -आज -कल

  

भविष्य का सोच आज परेशान है ,

वर्तमान पिछली बातें सोच हैरान है ,

कहाँ है "अभी" वक्त जो हाथ में है ,

दो कल के बीच में फँसा पड़ा हैं। 

 

सबब ये है ध्यान बीती बातों में ,

चिंता आने वाले वक्त की सदा ,

मजा ले सकते है अभी में ,

वक्त का भी यही है तकाज़ा। 

 

बीता वक्त अब लौट नहीं सकता ,

आने वाले वक्त का बस कयास ही सही ,

तन -मन लगा अभी पर बस "आनन्द " ,

यही सुलझायेगा  कड़ियाँ  सभी।