शनैः शनैः हम इक ,
छलावे की दुनिया ,
असली समझ ,
गिरफ्त में आ रहे है ,
इस दुनिया का कोई ,
सिर पैर नहीं है ,
सब आभाषी ,
सब छदम ,
इसी दुनिया को अब ,
नई दुनिया समझ रहे है।
डर इस बात का है सिर्फ ,
छदम या आभाषी दुनिया की ,
उम्र लंबी नहीं होती है ,
फिर जब टूटेगा भ्रम ,
तब तक शायद बहुत देर ,
हो चुकी होगी ,
और शायद इक पीढ़ी ,
भ्रम में ही खप चुकी होगी,
नई पीढ़ी को फिर ,
सिफ़र से शुरुवात करनी होगी।
अति सुंदर
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