Wednesday, September 16, 2009

आशा की लौ !

सूरज डूब रहा तो क्या, कल फिर किरणों का राज होगा.

आज पतझर हैं तो क्या, कल फिर कलियों में शबाब होगा.

आज तेरे साथ बुरा हुआ तो क्या, कल फिर तेरे पास ख्वाब होगा.

कल बूरा था तो क्या हुआ, आने वाले कल पर तेरा राज होगा.

कुछ नहीं तेरे पास तो क्या हुआ, तेरे होंसले का साथ होगा.

आज तेरी नहीं सुनती दुनिया तो क्या हुआ, कल तेरे पीछे सैलाब होगा.

कश्ती तेरी फँसी मझधार में तो क्या हुआ, पतवार तेरे हाथ होगा,

साथ तेरे छोड़ दे सारी दुनिया तो क्या हुआ, तेरा विश्वास तेरे साथ होगा.

न दे साथ किस्मत तेरी तो क्या हुआ, यही तेरा असली इम्तिहान होगा.

1 comment:

  1. आपने बिलकुल सही लिखा,सुरज डूब रहा तो क्या,कल फिर किरणों का राज होगा। जीवन में कभी निराश नही होना चाहिए,अच्छी कविता है।

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